Type Here to Get Search Results !

प्राचीन शीतला माता मंदिर, अदलपुरा, चुनार: मिर्जापुर का प्रमुख शक्तिपीठ और आस्था का केंद्र

प्राचीन शीतला माता मंदिर, अदलपुरा, चुनार: मिर्जापुर का प्रमुख शक्तिपीठ और आस्था का केंद्र

मिर्जापुर की पवित्र भूमि पर कई धार्मिक स्थल हैं, लेकिन शीतला माता मंदिर, अदलपुरा, चुनार एक अनोखा और प्राचीन शक्तिपीठ है।

गंगा किनारे बसा यह मंदिर मां शीतला की कृपा का प्रतीक है, जहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर की स्थापना एक निषाद को स्वप्न दर्शन से हुई थी?

चैत मेला और सावन मेला में यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। अगर आप मिर्जापुर पर्यटन की योजना बना रहे हैं या शक्तिपीठों के शौकीन हैं, तो यह लेख आपको इस दिव्य धाम की पूरी जानकारी देगा।

आइए, शीतला माता मंदिर अदलपुरा की यात्रा पर चलते हैं और इसके इतिहास, महत्व, मेले और यात्रा टिप्स को विस्तार से जानते हैं।

Shitla Mata Temple Mirzapur Adalpura

मंदिर का इतिहास: स्वप्न दर्शन और निषादों की भूमिका

शीतला माता मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मां शीतला कौशांबी जनपद से नाराज होकर गंगा नदी के रास्ते यहां आईं।

उन्होंने मंगल नाम के एक निषाद को स्वप्न में दर्शन दिए और गंगा से अपनी मूर्ति निकालकर मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया।

मंगल निषाद ने आसपास के लोगों के साथ मिलकर मूर्ति निकाली और मंदिर की स्थापना की। यह घटना सैकड़ों वर्ष पहले की मानी जाती है।

इन्हें भी पढ़े :: शिवशंकरी धाम: चुनार, मिर्ज़ापुर का प्राचीन आध्यात्मिक केंद्र और पर्यटन स्थल

बीच में विवाद भी हुआ, जब पड़ोसी गांव के पंडितों ने पूजा-अर्चना पर आपत्ति जताई और न्यायालय में वाद दायर किया। लेकिन अदालत ने निषाद समुदाय के पक्ष में फैसला दिया, और आज भी मंदिर के प्रधान पुजारी निषाद हैं।

Shitla Mata Temple Adalpura Mirzapur

वे पूजा-पाठ और प्रसाद तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह मंदिर सामाजिक समरसता का प्रतीक है, जहां जाति-पाति से ऊपर उठकर सभी भक्त एक साथ पूजा करते हैं।

  • मंदिर की स्थापना से जुड़ी यह कहानी भक्तों में गहरा विश्वास जगाती है कि मां शीतला सभी की रक्षा करती हैं।

धार्मिक महत्व: मनोकामनाओं की पूर्ति और चेचक से मुक्ति

शीतला माता को चेचक (शीतला रोग) से मुक्ति देने वाली देवी माना जाता है। यह मंदिर देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां शीतला की आराधना से परिवार की एकता बनी रहती है और सभी मुरादें पूरी होती हैं।

इन्हें भी पढ़े :: भंडारी देवी मंदिर अहरौरा, मिर्ज़ापुर: इतिहास, धार्मिक मान्यता और पर्यटन की एक अनोखी यात्रा

भक्त यहां पुत्र प्राप्ति, नौकरी, स्वास्थ्य और शादी की मन्नत मांगते हैं। विशेष रूप से बच्चों का मुंडन कराने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। जो लोग मुंडन नहीं करा पाते, वे बाद में बच्चों को दर्शन के लिए जरूर लाते हैं।

Shitla Mata  Adalpura Mirzapur

मंदिर में हवन और पूजा के दौरान भक्तों की आस्था देखते बनती है। मंदिर के पंडित सच्चिदानंद पाठक और अजीत कुमार बताते हैं कि मां मांझी (निषाद) द्वारा ही पूजा स्वीकार करती हैं, जिससे यहां की पूजा व्यवस्था अनोखी है।

Shitla Mata Mandir drone view Adalpura Mirzapur

श्रद्धालु मंदिर परिसर में चादर बिछाकर रात गुजारते हैं, खाना बनाते हैं और कठिनाइयों को आस्था से पार करते हैं। यह स्थान हिंदू धर्म में सामाजिक समरसता का उदाहरण है, जहां निषाद समुदाय की सहभागिता प्रमुख है।

मेले और उत्सव: चैत और सावन का भव्य आयोजन

शीतला माता मंदिर में साल में दो बड़े मेले लगते हैं। चैत मेला नवरात्रि के दौरान लगता है, जिसमें अष्टमी और नवमी पर भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।

Shitla Mata Mela Adalpura Mirzapur

सोमवार और रविवार को 1.5-2 लाख लोग दर्शन करते हैं। मेला में भजन, कीर्तन और प्रसाद वितरण होता है। प्रशासन द्वारा पानी, सुरक्षा और यातायात की विशेष व्यवस्था की जाती है।

Shitla Mata Temple Adalpura

सावन मेला (जुलाई-अगस्त) में भी दूर-दराज से भक्त आते हैं। इन मेलों में भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मां को चढ़ावा चढ़ाते हैं।

इन्हें भी पढ़े :: श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर (बेटी जी का मंदिर), मिर्ज़ापुर एक आध्यात्मिक यात्रा

मेले के दौरान मंदिर परिसर जीवंत हो जाता है, जहां स्टॉल, झूले और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों में भक्त उपवास रखते हैं और मां की आरती में शामिल होते हैं।

स्थापत्य कला और विशेषताएं: गंगा किनारे का दिव्य धाम

मंदिर का स्थापत्य पारंपरिक है, जो गंगा किनारे की प्राकृतिक सुंदरता से जुड़ा है। मुख्य मंदिर में मां शीतला की प्राचीन मूर्ति विराजमान है, जो भक्तों को शीतलता प्रदान करती है।

मंदिर प्रांगण में हवन कुंड, प्रसाद कक्ष और विश्राम स्थल हैं। गंगा घाट से जुड़ा होने से भक्त स्नान कर दर्शन करते हैं।

मंदिर की विशेषता निषाद पुजारी हैं, जो प्रसाद तैयार करते हैं। यहां की सामाजिक समरसता ऊंच-नीच से दूर है, जो इसे अनोखा बनाती है।

शीतला माता मंदिर की लोकेशन और पहुंचने का तरीका

शीतला माता मंदिर मिर्जापुर जिले के चुनार तहसील में अदलपुरा गांव में स्थित है। यह पवित्र स्थल गंगा नदी के किनारे है, जो इसे प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

Shitla Mata Mandir Adalpura Mirzapur 1

मिर्जापुर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 37 किलोमीटर है, जबकि वाराणसी से यह करीब 30-35 किलोमीटर दूर है।

Shitla Mata Temple Adalpura chunar Mirzapur

चुनार किले से मात्र 5-7 किलोमीटर की दूरी पर होने से यह मिर्जापुर पर्यटन का एक प्रमुख आकर्षण है। मंदिर का परिवेश गंगा की लहरों और हरियाली से भरा है, जो भक्तों को शीतलता और शांति देता है।

पहुंचने के साधन:

  • ट्रेन से: चुनार रेलवे स्टेशन से टैक्सी या ऑटो लेकर 5-7 किलोमीटर में मंदिर पहुंचा जा सकता है। मिर्जापुर स्टेशन से 45 मिनट का सफर।
  • बस से: मिर्जापुर या वाराणसी से चुनार तक बसें उपलब्ध हैं। चुनार से लोकल वाहन से अदलपुरा।
  • कार से: जीपीएस पर "शीतला माता मंदिर अदलपुरा मिर्जापुर" सर्च करें। वाराणसी-मिर्जापुर राजमार्ग से चुनार होते हुए आसानी से पहुंचा जा सकता है।
  • निकटतम हवाई अड्डा: लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा, वाराणसी (करीब 40 किमी)।

मंदिर तक का रास्ता सुगम है, लेकिन मेले के समय भीड़ अधिक होती है। गंगा घाट से मंदिर की दूरी कम है, जो नाव यात्रा को भी रोमांचक बनाता है।

विकास और सुविधाएं: भक्तों की सुविधा का ध्यान

हाल के वर्षों में, मंदिर का विकास हुआ है। प्रशासन द्वारा मेले के समय पानी, बिजली और सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है। मंदिर समिति निषाद समुदाय के साथ मिलकर रखरखाव करती है।

इन्हें भी पढ़े :: प्राचीन काली मंदिर मुस्फ्फरगंज: मिर्ज़ापुर के नारघाट रोड पर स्थित माँ काली का धाम – पूरी जानकारी और यात्रा गाइड 

हालांकि, गर्मी में गंदगी और भीड़ की समस्या होती है, लेकिन आस्था सब पर भारी पड़ती है। भविष्य में बेहतर सड़क और पार्किंग की योजनाएं हैं, जो मिर्जापुर पर्यटन को बढ़ावा देंगी।

यात्रा टिप्स: मिर्जापुर यात्रा को बनाएं यादगार

  1. सही समय चुनें: चैत मेला (मार्च-अप्रैल) या सावन मेला (जुलाई-अगस्त) में जाएं। नवरात्रि में अष्टमी-नवमी पर विशेष दर्शन।
  2. कपड़े और सामान: हल्के कपड़े, पानी की बोतल और चढ़ावा (फल, मिठाई) साथ रखें। मुंडन के लिए आवश्यक सामग्री लाएं।
  3. पूजा सामग्री: सिन्दूर, चावल और फूल। प्रसाद में निषाद द्वारा बनाया खाना चखें।
  4. आसपास के दर्शनीय स्थल: चुनार किला, विंध्यवासिनी मंदिर और गंगा घाट देखें।
  5. रहने की व्यवस्था: चुनार या मिर्जापुर में होटल। मंदिर में रात रुकने की सुविधा सीमित।
  6. सावधानी: मेले में भीड़ से सावधान। गर्मी में हाइड्रेटेड रहें। गंगा स्नान के लिए सतर्कता बरतें।

निष्कर्ष: एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक यात्रा

शीतला माता मंदिर, अदलपुरा, चुनार केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, समरसता और चमत्कारों का संगम है। गंगा किनारे बसा यह शक्तिपीठ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करता है।

इन्हें भी पढ़े :: दक्षिणेश्वरी काली मां का मंदिर, त्रिमोहानी मिर्जापुर: एक प्राचीन और आध्यात्मिक स्थल की पूरी जानकारी

मेले के दौरान की रौनक और निषादों की भूमिका इसे अनोखा बनाती है। अगर आप मिर्जापुर की यात्रा पर हैं, तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करें। यह आपकी आस्था को मजबूत करेगा और भारत की सांस्कृतिक विरासत से जोड़ेगा।

प्राचीन शीतला माता मंदिर अदलपुरा FAQ

प्राचीन शीतला माता मंदिर अदलपुरा: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

शीतला माता मंदिर अदलपुरा मिर्जापुर कहां स्थित है?
यह मंदिर मिर्जापुर के चुनार तहसील में अदलपुरा गांव में, गंगा किनारे स्थित है, जो मिर्जापुर से 37 किमी और वाराणसी से 30-35 किमी दूर है।
शीतला माता मंदिर की स्थापना कैसे हुई?
मां शीतला ने मंगल नाम के निषाद को स्वप्न दर्शन दिए और गंगा से मूर्ति निकालकर मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया। यह सैकड़ों वर्ष पुराना है।
मंदिर में चैत मेला कब और क्यों लगता है?
चैत मेला मार्च-अप्रैल में नवरात्रि के दौरान लगता है। अष्टमी-नवमी पर 1.5-2 लाख भक्त दर्शन करते हैं।
मंदिर में सावन मेला कब होता है?
सावन माह (जुलाई-अगस्त) में मेला लगता है, जिसमें भक्त दर्शन और पूजा के लिए आते हैं।
मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है?
मां शीतला चेचक से मुक्ति और मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यह परिवार की एकता और शांति का प्रतीक है।
मंदिर में निषाद समुदाय की क्या भूमिका है?
निषाद मंदिर के प्रधान पुजारी हैं और पूजा-पाठ व प्रसाद तैयार करते हैं, जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
मंदिर में मुंडन संस्कार क्यों होता है?
भक्त अपने बच्चों का मुंडन मां शीतला की कृपा के लिए कराते हैं। बाद में दर्शन के लिए भी लाते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
मिर्जापुर या वाराणसी से बस, टैक्सी या कार से चुनार, फिर अदलपुरा पहुंचें। निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी में है (40 किमी)।
मंदिर में सबसे ज्यादा भीड़ कब होती है?
चैत मेले में सोमवार और रविवार को 1.5-2 लाख भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
मंदिर की स्थापना से जुड़ा विवाद क्या था?
पड़ोसी पंडितों ने पूजा पर आपत्ति जताई, लेकिन न्यायालय ने निषाद समुदाय के पक्ष में फैसला दिया।
मंदिर में कौन सी मनोकामनाएं मांगी जाती हैं?
पुत्र प्राप्ति, नौकरी, स्वास्थ्य और शादी की मन्नतें मांगी जाती हैं।
मंदिर के आसपास क्या सुविधाएं हैं?
मेले में पानी, सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था। चुनार या मिर्जापुर में होटल उपलब्ध।
मंदिर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय क्या है?
चैत मेला (मार्च-अप्रैल) और सावन मेला (जुलाई-अगस्त) में जाएं। अष्टमी-नवमी पर विशेष दर्शन।
मंदिर का स्थापत्य कैसा है?
मंदिर पारंपरिक है, जिसमें मां शीतला की प्राचीन मूर्ति, हवन कुंड और गंगा घाट से जुड़ा परिवेश है।
मंदिर में पूजा की क्या विशेषता है?
निषाद पुजारी पूजा और प्रसाद तैयार करते हैं। हवन और आरती में भक्त शामिल होते हैं।

Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी स्थानीय मान्यताओं और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। मंदिर के इतिहास और चमत्कारों की प्रामाणिकता की पुष्टि के लिए स्वतंत्र शोध करें।

यह ब्लॉग केवल सूचना और पर्यटन प्रचार के लिए है। किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं है।

क्या आपने इस मंदिर के दर्शन किए हैं? या फिर इसके चमत्कारों की कोई कहानी सुनी है? कमेंट में साझा करें!