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घंटाघर मिर्ज़ापुर: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र।


घंटाघर मिर्ज़ापुर: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र।

नमस्ते दोस्तों, मैं मनोज शर्मा! आज मैं आपको ले चलता हूँ मिर्ज़ापुर यात्रा के दौरान सबसे ख़ास स्थान, घंटाघर की ओर, जो आज भी अपने इतिहास को समेटे सीना ताने खड़ा है और अपनी आवाज़ से अपनी कहानी को बयान कर रहा है। 

तो चलिए मेरे साथ इस घंटाघर की यात्रा के लिए, वो भी मेरी नजरों से, जहाँ हर कदम पर इतिहास और कला की गूंज सुनाई देगी। 

मिर्ज़ापुर, गंगा के किनारे बसा एक शहर, जो अपनी धरोहरों से भरा पड़ा है, और उसमें सबसे अनमोल है यह घंटाघर हैं। 

mirzapur ghanta ghar

जब मैंने पहली बार इसे देखा, तो मेरे मन में एक अलग ही उत्साह जागा—ये इमारत सिर्फ एक घड़ी वाला टावर नहीं, बल्कि मिर्ज़ापुर की जीती जागाती धड़कन है।

घंटाघर की भव्यता: पहली नजर का जादू

जैसे ही आप घंटाघर के सामने पहुँचते हैं, आपकी नजरें 100 फीट ऊँची इस मीनार पर ठहर जाती हैं। जो गुलाबी देशी पत्थरों से बना है।

ghantaghar nagar palika mirzapur

यह घंटाघर ऐसा लगता है जैसे किसी ने कला का एक मास्टरपीस गढ़ दिया हो। इसकी दीवारों पर की गई महीन नक्काशियाँ इतनी खूबसूरत हैं कि आपकी आँखें बस इधर-उधर घूमती रहें।

ghanta ghar nakkashi meerjapur
  • यह घंटाघर पूरे एशिया में अपने आप में अनोखा है—इस जैसा दूसरा कहीं नहीं मिलेगा।

 मिर्ज़ापुर के कारीगरों ने अपनी कारीगरी का बखूबी इस्तेमाल किया है, और ये नक्काशियाँ वाकई काबिले-तारीफ हैं। 

Ghanta Ghar mirzapur

जटिल डिज़ाइनों में फूल-पत्तियों, जानवरों, और ज्यामितीय आकृतियों का ऐसा मेल है कि आप सोच में पड़ जाएँ कि ये सब कैसे बनाया गया होगा।

घंटाघर नक्काशियों का सफर: कारीगरों की आत्मा

अब थोड़ा रुककर इन नक्काशियों की बात करते हैं, जो इस घंटाघर को खास बनाती हैं। दीवारों पर हर पत्थर पर अलग-अलग कहानियाँ उकेरी गई हैं। 

mirzapur ghantaghar ghadi

कहीं फूलों की बेलें लिपटी हैं, तो कहीं शेर या हाथी की आकृतियाँ दिखती हैं, वो भी इतनी बारीकी से कि आप हैरान रह जाएँ। 

mirzapur  GhantaGhar mahin nakkashi

ऊपरी मीनार में जालीदार काम है, जिसमें छोटे-छोटे छेदों से रोशनी झाँकती है, और उसमें फूल-पत्तियों का नक्शा साफ़ नजर आता है। 

mirzapur  Ghanta Ghar  jaliyo par nakkashi

मेहराबनुमा गेट्स के ऊपर देवी-देवताओं के चेहरे हैं, जिनके चारों ओर फूलों की माला सी बनी है।

mirzapur ki  nakkashi ghanta ghar

 एक जगह तो मुझे लगा जैसे कोई शेर अपने पंजे उठाए खड़ा हो, और दूसरी ओर छोटे-छोटे चेहरों वाली मूर्तियाँ हैं, जो लगता है जैसे बोल रही हों। 

mirzapur ghantaghar nakkashi

ये सारी चीज़ें बताती हैं कि मिर्ज़ापुर के कारीगरों ने अपनी पूरी जान इसमें डाल दी थी। ऐसी दुर्लभ नक्काशियाँ आज के दौर में शायद ही कहीं देखने को मिलें।

 घंटाघर निर्माण की कहानी: एकजुटता का प्रतीक

इस घंटाघर की नींव 31 मई 1891 को रखी गई थी, और ये बनकर 1891 में ही तैयार हो गया। लेकिन अगर आप गौर से देखें, तो आखिरी मंजिल की खिड़कियों पर 1991 की तारीख लिखी है, जो शायद कोई गलती या बाद में जोड़ी गई हो सकती है। हालांकि असली इतिहास 1891 का ही माना जाता है। 

meerjapur ghantaghar

इसकी लागत उस समय 18,000 रुपये थी, जो स्थानीय व्यापारियों, अधिकारियों, काशी नरेश, कन्तित-विजयपुर नरेश, और महारानी वेदशरण कुँवरि (अगोरी-बड़हर) जैसे दानदाताओं ने मिलकर दी।

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दानदाताओं द्वारा दू गई रकम पाषाण-पट्ट पर लिखी है, जो आज भी इस इमारत की दीवारों पर गर्व से खड़ी है।

mirzapur ghantaghar ki shila patt

मैं सोचता हूँ कि ये सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उस दौर की एकजुटता की मिसाल है। जिसे कारीगरों ने अपनी कला से इसे सजाया, और लोगों ने अपने पैसे से इसे खड़ा किया। 

mirzapur ki dhadkan  ghanta ghar

ये घंटाघर रोमन स्थापत्य कला से प्रेरित है, लेकिन भारतीय शिल्पकला की झलक इसमें साफ़ दिखती है।

घड़ी की धड़कन: मिर्ज़ापुर का दिल

अब बात करते हैं इस घंटाघर की जान की यानी कि उस घड़ी की, जिसे मिर्ज़ापुर की धड़कन कहा जाता है। 

GHANTAGHAR GHADI 1866 MIRZAPUR

ये घड़ी 1866 में लंदन की मेसर्स मीयर्स स्टेन बैंक कंपनी ने बनाई थी, और इसे तत्कालीन सदस्य मोहन लाल ने दान में दिया था। 

ये घड़ी गुरुत्वाकर्षण बल से चलती है, जिसमें कोई स्प्रिंग नहीं है। इसका पेंडुलम 20 फीट लंबा है, और यह 1000 किलो की मिश्र धातु की बनी है। घड़ी का वज़न करीब एक क्विंटल है, और ये जटिल कारीगरी का नमूना है।

GHANTAGHAR GANTA MIRZAPUR

जब ये घड़ी चलती थी, तो उसकी आवाज़ 20 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती थी। 

GHANTAGHAR UP MIRZAPUR

उस समय घर-घर में घड़ियाँ नहीं हुआ करती थीं, तो सरकारी कर्मचारी और व्यापारी इसकी गूंज सुनकर समय जानते थे और काम शुरू करते थे।

ghantaghar की Painting mirzapur

सुबह की पहली घंटी से लेकर रात की आखिरी आवाज़ तक, ये घड़ी मिर्ज़ापुर की ज़िंदगी का हिस्सा थी। लेकिन वक्त के साथ ये धड़कन थम गई, और रखरखाव की कमी से ये कबाड़ बनकर रह गई।

mirzapur ki shan GhantaGhar

उतार-चढ़ाव: बंद हुई धड़कन

कुछ साल पहले तक ये घड़ी सही से नहीं चल रही थी। लेकिन सही ढंग से रख रखवा ना होने के कारण यह घडी बंद हो गई और इसी के साथ घंटाघर की धड़कन थम गई।

GHANTA GHAR mirzapur ghadi

इस घंटाघर के लिए बुरा वक़्त वो था जब  24 जुलाई 2022 को आकाशीय बिजली इस घडी पर गिरी जिसके कारण और अधिक  क्षतिग्रस्त हो गई।

जिससे स्थानीय लोग लोग खिन्न हो गए थे, क्योंकि यह सवा सौ साल से नगर को जगाने वाली ये घड़ी अब खामोश हो गई थी। 

यह घंटा घर से कुछ ही दुरी पर स्थित हैं अगर आप घंटाघर आये हैं तो इसे भी जरुर देखे...

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नगर पालिका के अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने बताया कि कई बार इसे ठीक करने की कोशिश हुई, लेकिन कुशल कारीगर नहीं मिले। वो कहते हैं, "प्रयास जारी है कि इसे फिर से पुरानी शान में लाया जाए।"

नई उम्मीद: डिजिटल युग और 15 अगस्त 2023

लेकिन उम्मीद की किरण भी दिखी। नगर पालिका अध्यक्ष श्यामसुंदर केसरी की पहल पर 15 अगस्त 2023 को ये घड़ी फिर से चालू हुई। 

  • ढाई दशक बाद मिर्ज़ापुर वासियों ने फिर से उस धड़कन को सुना। 

जिला अधिकारी दिव्या मित्तल ने बताया, "जब मैं मिर्ज़ापुर आई, तो इस घड़ी की कहानी पता चली।  श्यामसुंदर जी ने इसे गंभीरता से लिया, और दिल्ली की एक कंपनी ने 6 लाख रुपये में चार डिजिटल घड़ियाँ बनाईं।

ghantaghar Painting mirzapur

" ये नई घड़ियाँ मीनार की चारों दीवारों पर लगी हैं, और ये मिर्ज़ापुर के लिए गर्व की बात है।

घंटाघर प्रांगण की रौनक: मूर्तियाँ और मंदिर

घंटाघर का प्रांगण भी कम खूबसूरत नहीं है। यहाँ मंदिर भी कुआँ भी यहाँ और साथ ही एक छोटा सा पार्क भी हैं जो घंटाघर की भव्यता को और बढाता हैं

mirzapur ghantaghar lokpati tripathi pratima

यहाँ लोकपति त्रिपाठी की प्रतिमा है, जिसका अनावरण तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष दीपचंद जैन ने कराया था। ये मूर्ति प्रांगण में गर्व से खड़ी है, और लोग इसे देखकर सम्मान जताते हैं। 

मिर्ज़ापुर घंटा घर लाल बहादुर शास्त्री प्रतिमा

इसके पास ही पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी की प्रतिमा है, जिसे जिला हलवाई संघ मिर्ज़ापुर ने 23 जनवरी 1967 को स्थापित किया था।

यह घंटा घर से कुछ ही दुरी पर स्थित हैं अगर आप घंटाघर आये हैं तो इसे भी जरुर देखे...

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ये प्रतिमा एक छोटे से पार्क में है, जहाँ सुबह-शाम लोग टहलने आते हैं। शास्त्री जी का चेतगंज में ससुराल और गणेशगंज में ननिहाल होने की वजह से ये प्रतिमा यहाँ और खास हो जाती है।

मिर्ज़ापुर घंटा घर शनिदेव मंदिर

प्रांगण में शनि देव जी का मंदिर भी है, जहाँ भक्त अपनी मनोकामना माँगने आते हैं। 

मिर्ज़ापुर घंटा घर घंटेश्वर महादेव

साथ ही इस प्रांगण में घंटेश्वर महादेव का शिव मंदिर है, जो शांति का केंद्र है। मैंने सुना कि यहाँ आने वाले लोग इस मंदिर में पूजा करके मन को शांत करते हैं।

mirzapur ghanta ghar kuan

घंटेश्वर महादेव मंदिर से सटा एक कुआँ भी हैं, जो यहाँ आने वाले लोगों की प्यास बुझाता हैं इसका जल अत्यंत ही साफ़ और स्वक्ष रहता हैं. 

mirzapur ghanta ghar pani ki tanki

प्रांगण में एक विशाल पानी की टंकी भी है, जो नगर में पानी की आपूर्ति करती है और लोगों की प्यास बुझाती है।

mirzapur ghanta ghar fuhara

रात में चलने वाला एक फुवारा भी है, जो प्रांगण को और आकर्षक बनाता है—खासकर जब उसकी रोशनी में पानी चमकता है।

संरक्षण का प्रयास: 23 जनवरी 2024

23 जनवरी 2024 को जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने घंटाघर का निरीक्षण किया। अपर जिलाधिकारी शिव प्रताप शुक्ल और नगर पालिका के अधिकारियों के साथ, उन्होंने साफ-सफाई, टूटे पत्थरों की मरम्मत, बागवानी, और अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा, "इस ऐतिहासिक इमारत के लिए प्रस्ताव बनाया जाए ताकि इसका संरक्षण हो सके।"

mirzapur ghantaghar maidan

 लेकिन सच कहूँ तो, प्रांगण की दीवारों के आसपास सब्जी के ठेले और दुकानें अतिक्रमण कर रही हैं। अगर कोई रोड से घंटाघर को देखना चाहे या परिक्रमा लगाकर इसकी सुंदरता निहारे, तो ये अतिक्रमण उसे रोकता है। 

mirzapur ghantaghar atikraman

मेरे ख्याल से सुंदरकरण के साथ अतिक्रमण हटाना भी जरूरी है, ताकि एशिया का सबसे खूबसूरत घंटाघर सैलानियों के लिए यादगार बने।

घंटाघर म्यूजियम का सपना और पर्यटन

नगर पालिका अध्यक्ष का सपना है कि घंटाघर को म्यूजियम बनाया जाए। पहले यहाँ नगर पालिका का कार्यालय था, जहाँ सभासद, अध्यक्ष, और अधिशासी अधिकारी बैठते थे, लेकिन  इसे लालडिग्गी शिफ्ट कर दिया गया। 

nagar palika mirzapur

अब पुरातत्व विभाग ने राजस्व अभिलेख माँगे हैं, और म्यूजियम बनाने की उम्मीद जगी है। इसका नाम लालबहादुर शास्त्री के नाम पर होगा, जो पर्यटन को बढ़ावा देगा। 

लेकिन अभी ये वादा अधूरा है। मैं चाहता हूँ कि इसे पर्यटन विभाग की लिस्ट में शामिल किया जाए और प्रचार-प्रसार हो, ताकि मिर्ज़ापुर की शान दुनिया देखे।

कायाकल्प की योजना

घंटाघर के कायाकल्प के लिए पत्थरों को चमकाया जाएगा, पाथवे बनाया जाएगा, और चारों तरफ हरे-भरे पेड़ लगाए जाएँगे। ओझला पुल का भी पुनरोद्धार होगा। 

mirzapur ghantaghar 1

नगर पालिका ने इसके लिए बजट की व्यवस्था की है। ये कदम घंटाघर को नया जीवन दे सकते हैं, और मैं उम्मीद करता हूँ कि ये योजना जल्द पूरी हो।

मेरी नजर से: एक जीवंत विरासत

मिर्ज़ापुर का घंटाघर मेरे लिए सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक जीवंत कहानी है। इसकी नक्काशियाँ, घड़ी की गूंज, प्रांगण की मूर्तियाँ, मंदिर, और फुवारा—सब कुछ मिलकर इसे खास बनाता है। 

mirzapur ka Ghanta Ghar

अतिक्रमण और रखरखाव की कमी के बावजूद, ये घंटाघर अपनी शान बरकरार रखे हुए है। मैं चाहता हूँ कि ये म्यूजियम बने, पर्यटन बढ़े, और मिर्ज़ापुर की ये धड़कन हमेशा गूंजती रहे। तो दोस्तों, आप भी इस यात्रा का हिस्सा बनें और इस घंटाघर की कहानी को अपने दिल में संजोएँ!

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कैसे पहुँचे घंटाघर

घंटाघर मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन और रोडवेज बस स्टैंड से लगभग 2.3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जबकि यह मिर्ज़ापुर के जिला मुख्यालय से केवल 1.3 किलोमीटर दूर है।

यह घंटाघर मिर्ज़ापुर नगर के मध्य में स्थित है और प्रसिद्ध मोहल्ले घंटाघर चौराहे के पास मौजूद है, जहाँ तक आप आसानी से पहुँच सकते हैं।

घंटा घर पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल जवाब FAQ

मिर्ज़ापुर घंटाघर FAQs

मिर्ज़ापुर घंटाघर कहाँ स्थित है?

मिर्ज़ापुर घंटाघर मिर्ज़ापुर नगर के मध्य में, घंटाघर चौराहे के पास है। यह रेलवे स्टेशन और रोडवेज से 2.3 किमी, जिला मुख्यालय से 1.3 किमी दूर है।

घंटाघर तक कैसे पहुँचे?

रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से ऑटो/रिक्शा से 2.3 किमी, या जिला मुख्यालय से 1.3 किमी पैदल/वाहन से पहुँचा जा सकता है।

घंटाघर कब बना था?

मिर्ज़ापुर का घंटाघर 1891 में बनकर तैयार हुआ था। जो दुर्लभ नक्काशियाँ संग्रह हैं।

इसके निर्माण में कितना खर्च आया?

इसके निर्माण में 18,000 रुपये का खर्च आया, जो पाषाण-पट्ट पर अंकित है।

घंटाघर की घड़ी कैसे काम करती है?

घड़ी गुरुत्वाकर्षण बल से चलती है, इसमें 20 फीट पेंडुलम और 1000 किलो घंटी है, जो 1866 में लंदन में बनी थी।

घड़ी की आवाज़ कितनी दूर तक सुनाई देती थी?

इसकी आवाज़ 20 किलोमीटर तक सुनाई देती थी, जो समय बताने का मुख्य साधन थी।

घंटाघर की ऊँचाई कितनी है?

घंटाघर की ऊँचाई लगभग 100 फीट है, जो इसे मिर्ज़ापुर का प्रमुख स्मारक बनाता है।

घंटाघर की नक्काशियाँ क्यों खास हैं?

गुलाबी पत्थरों पर जटिल नक्काशियाँ और फूल-पत्तियों की डिज़ाइन इसे एशिया का अनोखा घंटाघर बनाती हैं।

घंटाघर कब बंद हुआ था?

यह घडी लगभग 2 दशक से बंद थी, लेकिन 24 जुलाई 2022 को आकाशीय बिजली से और अधिक क्षतिग्रस्त हो गई।

घड़ी कब फिर से चालू हुई?

15 अगस्त 2023 को श्यामसुंदर केसरी की पहल से डिजिटल घड़ियाँ लगाकर इसे फिर चालू किया गया।

प्रांगण में क्या-क्या है?

प्रांगण में लोकपति त्रिपाठी और लालबहादुर शास्त्री की मूर्तियाँ, शनि देव और घंटेश्वर महादेव मंदिर, पानी की टंकी, और फुवारा है।

घंटाघर को म्यूजियम क्यों बनाया जा रहा है?

इसे म्यूजियम बनाकर धरोहर संरक्षित करना और पर्यटन बढ़ाना लक्ष्य है, नाम लालबहादुर शास्त्री पर होगा।

कायाकल्प योजना में क्या शामिल है?

पत्थर चमकाना, पाथवे बनाना, पेड़ लगाना, और ओझला पुल का पुनरोद्धार शामिल है, जिसके लिए बजट है।

अतिक्रमण की समस्या क्या है?

प्रांगण में सब्जी ठेले और दुकानें अतिक्रमण कर रही हैं, जो सुंदरता को प्रभावित करते हैं।

पर्यटन के लिए घंटाघर कब खुला रहता है?

सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है, लेकिन मरम्मत या आयोजन से समय बदल सकता है।

घंटाघर की खास झलकियाँ 

मिर्जापुर का ऐतिहासिक घंटा घर शहर की पहचान और गौरव का प्रतीक है। इसकी ऊँचाई, स्थापत्य कला और भव्यता दूर से ही लोगों का ध्यान खींचती है। 

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तो आईये हमारे कैमरे से खिची कुछ खास तस्वीरे को देखते हैं जो आपको इसकी तरफ आकर्षित करेगी और यहाँ आने के लिए विवस कर देगी! 

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Disclaimer

अस्वीकरण: यह लेख मिर्ज़ापुर घंटाघर के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जो सामान्य शोध और स्थानीय स्रोतों पर आधारित है। तथ्यों में संभावित त्रुटियाँ हो सकती हैं, और लेखक किसी भी असुविधा के लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यात्रा से पहले स्थानीय अधिकारियों से पुष्टि करें।