लोहंदी महावीर मंदिर, मिर्ज़ापुर: इतिहास, मान्यताएं और श्रावण मास का मेला
मिर्ज़ापुर नगर के दक्षिण में बसी लोमस ऋषि की पावन तपोभूमि, जिसे लोहंदी के नाम से जाना जाता है, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थल है।
इस क्षेत्र में स्थित भगवान श्रीराम भक्त हनुमान का प्राचीन मंदिर, जिसे लोहंदी महावीर मंदिर के नाम से जाना जाता है, भक्तों के लिए श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है।
मंदिर के उत्तरी भाग में बहने वाली लोहंदी नदी, जो आगे चलकर ओझला में मिलती है, इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाती है।
यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके साथ जुड़ी कथाएं, मान्यताएं और श्रावण मास में आयोजित होने वाला भव्य मेला इसे एक विशिष्ट पहचान देते हैं।
लोहंदी महावीर ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
लोहंदी क्षेत्र का उल्लेख पुराणों में लोमस ऋषि की तपोभूमि के रूप में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थल पर लोमस ऋषि ने कठोर तपस्या की थी,
जिसके फलस्वरूप यह स्थान आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र बन गया। लोहंदी महावीर मंदिर का निर्माण भी प्राचीन काल में हुआ माना जाता है, और यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग लोहंदी महावीर के नाम से पूजते हैं।
मंदिर का इतिहास केवल पौराणिक कथाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आधुनिक युग की आध्यात्मिक कहानियों से भी जुड़ा है।
मंदिर की सबसे प्रसिद्ध कथा पंडित रामगुलाम द्विवेदी से संबंधित है, जो मानस कथा के सुप्रसिद्ध विद्वान थे। उन्होंने इस मंदिर में कठिन साधना की और भगवान लोहंदी महावीर से साक्षात आशीर्वाद प्राप्त किया।
पंडित रामगुलाम द्विवेदी की भावपूर्ण कथा: लोहंदी महावीर की कृपा
मिर्ज़ापुर की पावन धरती पर बसा लोहंदी महावीर मंदिर न केवल भक्ति का केंद्र है, बल्कि चमत्कारों और आस्था की अनगिनत कहानियों का साक्षी भी है।
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इन कहानियों में सबसे अधिक हृदयस्पर्शी और प्रेरणादायक है पंडित रामगुलाम द्विवेदी की कथा, जो भक्तों के बीच आज भी आस्था और विश्वास की मिसाल बनी हुई है।
यह कथा न केवल लोहंदी महावीर की असीम कृपा को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति और भावपूर्ण प्रार्थना असंभव को संभव बना सकती है।
एक पिता की व्यथा
पंडित रामगुलाम द्विवेदी, एक साधारण लेकिन विद्वान और भक्तिपूर्ण जीवन जीने वाले पंडित थे, जिनका जीवन श्रीराम और हनुमान जी की भक्ति में समर्पित था।
उनकी वाणी में मानस कथा की मधुरता और हृदय में भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा थी। लेकिन, जैसा कि जीवन में अक्सर होता है, उनके सामने एक ऐसी चुनौती आई जो उनके हृदय को भारी कर रही थी।
उनकी प्रिय बेटी का विवाह नजदीक था, और एक पिता के रूप में उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि उनकी बेटी का विवाह धूमधाम और सम्मान के साथ हो।
किंतु, आर्थिक तंगी ने उनके इस सपने पर काले बादल मंडराने शुरू कर दिए। धन के अभाव में वे अपनी बेटी के विवाह का उचित प्रबंध नहीं कर पा रहे थे।
हर दिन और हर रात, पंडित जी की आँखों में अपनी बेटी के भविष्य की चिंता और असहायता के आंसू छलक उठते। उनके मन में एक ही प्रश्न बार-बार उठता था, "मैं अपनी बेटी के लिए कैसे एक सुंदर भविष्य सुनिश्चित करूँ?
" लेकिन, उनकी भक्ति और विश्वास ने उन्हें कभी हार मानने नहीं दिया। वे जानते थे कि उनकी हर पुकार का जवाब उनके प्रभु, लोहंदी महावीर, के पास है।
लोहंदी महावीर के समक्ष सच्ची भक्ति
एक दिन, जब चिंताओं का बोझ असहनीय हो गया, पंडित रामगुलाम द्विवेदी लोहंदी महावीर मंदिर पहुँचे। उनके हृदय में भक्ति की ऐसी ज्वाला थी जो उनकी हर पीड़ा को भस्म करने की शक्ति रखती थी।
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मंदिर के पवित्र वातावरण में, हनुमान जी की मूर्ति के सामने बैठकर, उन्होंने श्रीराम-सीता विवाह प्रसंग का पाठ शुरू किया। यह प्रसंग उनके लिए केवल एक कथा नहीं थी;
यह उनके हृदय की पुकार थी, एक पिता की प्रार्थना थी जो अपनी बेटी के सुखमय जीवन के लिए प्रभु के चरणों में अर्पित हो रही थी।
पाठ के दौरान, पंडित जी भावविह्वल हो उठे। उनकी आँखें भक्ति और करुणा से भीग गईं, और उनके हृदय से निकली प्रार्थना सीधे लोहंदी महावीर तक पहुँच रही थी।
जैसे ही वे श्रीराम-सीता के विवाह का वर्णन कर रहे थे, उनकी आँखों से दो बूंद आंसू अनायास ही श्रीरामायण की पवित्र पुस्तक पर गिर पड़े। ये आंसू केवल जल की बूंदें नहीं थीं; ये उनकी सच्ची भक्ति, उनके पिता के प्रेम, और उनकी असहायता की मूक पुकार थे।
लोहंदी महावीर का चमत्कार
पाठ समाप्त कर जब पंडित जी ने अपनी आँखें खोलीं, तो उनके सामने एक ऐसा दृश्य था जिसे देखकर उनका हृदय आश्चर्य और कृतज्ञता से भर उठा।
श्रीरामायण की उस पवित्र पुस्तक पर, जहाँ उनके आंसू गिरे थे, दो चमकते हुए हीरे रखे थे। ये हीरे साधारण रत्न नहीं थे; ये लोहंदी महावीर की असीम कृपा और भक्त के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक थे।
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पंडित जी की आँखें आनंदाश्रुओं से भर आईं, और उनका मन भगवान हनुमान के प्रति कृतज्ञता से झुक गया।
पंडित जी ने इन दैवीय हीरों को काशीराज के पास ले जाकर सौंप दिया। काशीराज, जो उस समय के एक प्रतिष्ठित और धनवान शासक थे, इन अनमोल हीरों की कीमत को समझते थे।
उन्होंने इन हीरों के बदले पंडित रामगुलाम को अपार धन-संपत्ति, अनाज, और अन्य आवश्यक सामग्री प्रदान की। इस धन से न केवल पंडित जी अपनी बेटी का विवाह धूमधाम से कर पाए, बल्कि उनकी सारी चिंताएँ भी दूर हो गईं।
उनकी बेटी का विवाह एक उत्सव की तरह संपन्न हुआ, और पंडित जी का हृदय भगवान लोहंदी महावीर के प्रति असीम श्रद्धा से भर गया।
काशीराज के संग्रहालय में दैवीय हीरे
वे दोनों अनमोल हीरे, जो लोहंदी महावीर की कृपा के प्रतीक थे, लंबे समय तक काशीराज के संग्रहालय में प्रदर्शित रहे। ये हीरे न केवल अपनी चमक के लिए प्रसिद्ध थे, बल्कि इनके पीछे की कहानी ने भी इन्हें एक पवित्र अवशेष का दर्जा दिया।
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हर कोई जो इन हीरों को देखने आता, पंडित रामगुलाम और लोहंदी महावीर की इस चमत्कारी कथा को सुनकर भावविह्वल हो उठता।
एक प्रेरणादायक संदेश
पंडित रामगुलाम द्विवेदी की यह कथा केवल एक चमत्कार की कहानी नहीं है; यह सच्ची भक्ति, विश्वास, और प्रभु के प्रति समर्पण की शक्ति का प्रतीक है।
यह हमें सिखाती है कि जब मनुष्य का हृदय पूरी तरह से प्रभु के चरणों में समर्पित हो जाता है, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
लोहंदी महावीर का यह चमत्कार आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह कथा हमें याद दिलाती है कि भगवान हनुमान अपने भक्तों की हर पुकार सुनते हैं और उनकी हर विपदा में उनके साथ खड़े रहते हैं।
निष्कर्ष : पंडित रामगुलाम द्विवेदी की यह भावपूर्ण कथा लोहंदी महावीर मंदिर की महिमा को और बढ़ाती है। यह कथा भक्तों को यह विश्वास दिलाती है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
यदि आप कभी मिर्ज़ापुर की पावन धरती पर लोहंदी महावीर मंदिर के दर्शन के लिए जाएँ, तो पंडित रामगुलाम की इस कथा को अपने हृदय में जरूर संजोएँ।
यह कथा न केवल आपकी आस्था को और गहरा करेगी, बल्कि आपको उस असीम शक्ति से भी जोड़ेगी जो सच्ची भक्ति में निहित है।
लोहंदी महावीर मंदिर की मान्यताएं
लोहंदी महावीर मंदिर के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हैं, जो भक्तों को इस स्थान की ओर आकर्षित करती हैं। सबसे प्रचलित मान्यता यह है कि
श्रावण मास में पांच शनिवार तक मंदिर में दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह मान्यता मंदिर की लोकप्रियता का प्रमुख कारण है, और इस दौरान हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
इसके अलावा, मंदिर में की जाने वाली पूजा, अनुष्ठान और सुंदरकांड के पाठ को विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
भक्तों का विश्वास है कि लोहंदी महावीर उनकी सभी विपदाओं को हरते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
मंदिर के विशाल प्रांगण में एक कुआँ भी जो यहाँ आने वाले भक्तों अपनी प्यास बुझाते हैं इसका शीतल जल आत्मा को तृप्त कर देता हैं।
मंदिर के अन्दर कई अन्य मूर्तियाँ भी स्थापित हैं और यह मूर्तियाँ जब आप महवीर जी की परिक्रमा करते हैं तो पीछे आपको कई अन्य मंदिर भी मिलेंगे को काफी प्राचीन हैं।
श्रावण मास का मेला
लोहंदी महावीर मंदिर में श्रावण मास का मेला एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो मंदिर की तरह ही प्राचीन माना जाता है।
यह मेला श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रत्येक शनिवार को आयोजित होता है, और इस दौरान मंदिर परिसर भक्तों की अपार भीड़ से गूंज उठता है। मेले में स्थानीय और ग्रामीण जनता की भागीदारी विशेष रूप से देखने योग्य होती है।
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मेले के दौरान मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों, आभूषणों और रोशनी से सजाया जाता है। भक्तों द्वारा सुंदरकांड का पाठ, भजन संध्या, और विभिन्न अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
मेला न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और सामुदायिक एकता का प्रतीक भी है। मेले में स्थानीय व्यंजनों, हस्तशिल्प, और धार्मिक सामग्रियों की दुकानें भी लगती हैं, जो इसे और आकर्षक बनाती हैं।
शरद पूर्णिमा का उत्सव
श्रावण मास के मेले के अलावा, शरद पूर्णिमा के अवसर पर लोहंदी महावीर मंदिर में अन्नकूट और वार्षिकोत्सव का भव्य आयोजन होता है।
इस दिन भगवान महावीर को फूलों और आभूषणों से सजाया जाता है, और मंदिर में भजन संध्या का आयोजन होता है। भक्तों द्वारा अनुष्ठान, पूजन, और सुंदरकांड का पाठ किया जाता है।
अन्नकूट के दौरान विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है, जो भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह उत्सव मंदिर की भक्ति और उत्साह को और बढ़ाता है।
लोहंदी नदी और प्राकृतिक सौंदर्य
लोहंदी महावीर मंदिर की स्थिति लोहंदी नदी के तट पर है, जो इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता को और निखारती है। यह नदी मंदिर के उत्तरी भाग से होकर बहती है और आगे चलकर ओझला में मिलती है।
नदी का शांत प्रवाह और मंदिर का पवित्र वातावरण भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करता है। श्रावण मास में नदी के किनारे भक्तों का जमावड़ा और मेले की रौनक इस स्थान को और जीवंत बनाती है।

लोहंदी महावीर मंदिर कैसे पहुंचें
लोहंदी महावीर मंदिर मिर्ज़ापुर नगर के दक्षिण में स्थित है और आसानी से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से मंदिर तक ऑटो, टैक्सी, या स्थानीय परिवहन के साधन उपलब्ध हैं।
मंदिर की लोकप्रियता के कारण श्रावण मास में विशेष परिवहन व्यवस्था भी की जाती है, ताकि भक्तों को कोई असुविधा न हो।
लोहंदी महावीर मंदिर FAQs
निष्कर्ष
लोहंदी महावीर मंदिर, मिर्ज़ापुर का एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जो न केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का भी दर्पण है।
लोमस ऋषि की तपोभूमि पर स्थित यह मंदिर भगवान हनुमान की कृपा और चमत्कारों की कहानियों से भरा हुआ है। पंडित रामगुलाम द्विवेदी की कथा हो या श्रावण मास का भव्य मेला, यह स्थान भक्तों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है।
यदि आप मिर्ज़ापुर की यात्रा पर हैं, तो लोहंदी महावीर मंदिर के दर्शन और श्रावण मास के मेले का आनंद अवश्य लें। यह न केवल आपकी आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध करेगा, बल्कि मिर्ज़ापुर की सांस्कृतिक विरासत से भी आपको जोड़ेगा।