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मीरजापुरी कजली: उत्पत्ति, इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

 मीरजापुरी कजली: उत्पत्ति, इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

मीरजापुरी कजली, जिसे कजरी के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोकगीत है। 

यह सावन माह में गाया जाने वाला एक ऋतु आधारित गीत है, जो अपनी भावनात्मक गहराई, श्रृंगार रस, और प्रकृति के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है।

 कजली न केवल मिर्जापुर की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह पूरे भारत और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी लोकप्रिय है। 

इस लेख में हम मीरजापुरी कजली की उत्पत्ति, अखाड़ों के इतिहास, सांस्कृतिक महत्व, और हाल के सम्मानों जैसे पद्मश्री से सम्मानित उर्मिला श्रीवास्तव और अजिता श्रीवास्तव के योगदान को विस्तार से समझेंगे।

Mirzapur Kajali

कजली की उत्पत्ति

कजली की उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि जब मानव को स्वर और शब्द का ज्ञान हुआ और प्रकृति का कोमल स्पर्श लोक जीवन से जुड़ा, तब से लोकगीतों का उदय हुआ।

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 मिर्जापुर, जो माँ विंध्यवासिनी के शक्तिपीठ के लिए प्रसिद्ध है, कजली का उद्गम स्थल माना जाता है। प्राचीन कजरियों में माँ विंध्यवासिनी के प्रति भक्ति और शक्ति का गुणगान प्रमुखता से देखा जाता है।

एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, कंतित के राजा की पुत्री कजली के नाम पर इस गायन शैली का नाम पड़ा। कजली अपने पति से गहरा प्रेम करती थी, लेकिन उनके वियोग में उसने जो गीत रचे, वे कजली के नाम से विख्यात हुए। समय के साथ, अन्य वियोग और श्रृंगार रस के गीत भी कजली कहलाने लगे। 

कुछ विद्वान कजली शब्द को "कज्वला" से जोड़ते हैं, जो माँ विंध्यवासिनी का प्राचीन नाम था। दूसरों का मानना है कि यह सावन की काली घटाओं और काजल से प्रेरित है।

कजली गायन की परंपरा

कजली गायन की परंपरा सावन और भाद्रपद मास में विशेष रूप से जीवंत हो उठती है। यह परंपरा न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी संजोए रखती है। 

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कजली गीतों में श्रृंगार रस, वियोग, प्रकृति वर्णन, और सामाजिक मुद्दों का चित्रण होता है। ये गीत ढुनमुनियाँ कजरी, ठुमरी अंग, और ककहरा कजरी जैसे विभिन्न रूपों में गाए जाते हैं।

प्रमुख विशेषताएँ

  • ऋतु आधारित गायन: कजली को विशेष रूप से सावन माह में गाया जाता है, जब बारिश की फुहारें और प्रकृति की हरियाली गीतों में रंग भरती हैं। यह गीत "हरे रामा", "हो ननदीं", या "हो बलमु" जैसे उतार-चढ़ाव के साथ गाए जाते हैं, जो प्रकृति और मानव के प्रत्यक्ष जुड़ाव को दर्शाते हैं।
  • महिलाओं का योगदान: कजली तीज के दिन महिलाएँ समूह में ढुनमुनियाँ कजरी गाती हैं, जिसमें माँ विंध्यवासिनी और देवी पार्वती की पूजा शामिल होती है। यह परंपरा विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और अविवाहित लड़कियों द्वारा अच्छे वर की कामना के लिए की जाती है।
  • पुरुषों का गायन: पुरुष भी कजली गायन में भाग लेते हैं, लेकिन उनके आयोजन अलग होते हैं और अक्सर प्रतियोगिताओं के रूप में होते हैं।
  • विविध शैलियाँ: कजली गायन में अधरबंद, बिना मात्रा, शीशापलट, गऊबंद, नालबंद, कमलबंद, ककहरा कैद, ककहरा चबंन, दसंग, सोरंग, और झुमर जैसे कई प्रयोग किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, "हरे रामा", "साँवलिया", "बलमुआ", "रामा रामा", "जिअवा", "झालरिया", और "झीर झीर बुनिया" जैसी विधाएँ भी लोकप्रिय हैं।

कजली तीज और रतजगा

कजली तीज, जो भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, कजली गायन का एक प्रमुख अवसर है। इस दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं, नीम और गायों की पूजा करती हैं, और रातभर रतजगा करके कजली गीत गाती हैं।

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 यह उत्सव न केवल सांस्कृतिक, बल्कि धार्मिक और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है। मिर्जापुर का कजली महोत्सव इस परंपरा को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कंतित की राजकुमारी कजली को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

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यह महोत्सव आधुनिक रूप में भी मनाया जाता है, लेकिन इसकी मूल कथा को स्थानीय लोग आज भी संजोए रखते हैं।

मिर्जापुरी कजली की विशिष्टता

मिर्जापुरी कजली अन्य क्षेत्रों की कजरी से भिन्न है, क्योंकि यह न केवल उद्भव स्थल है, बल्कि इसमें प्रारंभिक परंपराओं का समावेश भी है। उदाहरण के लिए, मिर्जापुरी कजली के कुछ प्रसिद्ध बोल हैं:

  1. "पिया मेहंदी लिया द मोतीझील से जा के सायकिल से ना,
  2. मिर्जापुर कईला गुलजार हो कचौड़ी गली सुन कईला बलमू !!"

ये गीत स्थानीय संस्कृति, बोलचाल, और जीवन शैली को दर्शाते हैं, जो मिर्जापुरी कजली को अनूठा बनाते हैं।

मीरजापुरी कजली अखाड़ों का इतिहास

कजली अखाड़ों की परंपरा मिर्जापुर की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये अखाड़े कुश्ती के दंगलों की तरह आयोजित होते थे, जहाँ विभिन्न क्षेत्रों के गायक अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। 

प्रख्यात साहित्यकार अमर गोस्वामी ने अपनी पुस्तक में सात प्राचीन अखाड़ों का उल्लेख किया है, जिनमें से छह मिर्जापुर से संबंधित हैं:

  1. पंडित शिवदास का अखाड़ा
  2. राममूरत का अखाड़ा
  3. जहाँगीर का अखाड़ा
  4. बफत का अखाड़ा
  5. छवीराम का अखाड़ा
  6. बैरागी का अखाड़ा

इनमें से भैरो का अखाड़ा बनारस से संबंधित था, और इमामन जहाँगीर के शिष्य थे, इसलिए उनका अखाड़ा स्वतंत्र रूप से गिना नहीं जाता।

अखाड़ों की कार्यप्रणाली

  • गुरु-शिष्य परंपरा: प्रत्येक अखाड़े का एक गुरु होता था, जो अपने शिष्यों को कजली गायन की कला सिखाता था। ज्येष्ठ दशमी को ढोलक पूजन के साथ कजली गायन शुरू होता था और अनंत चतुर्दशी तक चलता था।
  • प्रतियोगिताएँ: अखाड़ों के बीच कजली दंगल आयोजित होते थे, जहाँ गायक अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते थे। एक अखाड़ा दूसरे को इलायची भेंट करके निमंत्रण देता था।
  • गोपनीयता: कजली लेखक अपनी रचनाओं को रजिस्टर में नोट करते थे, जो केवल अखाड़े के गायक ही पढ़ या याद कर सकते थे।

प्रमुख गायक

कजली दंगलों में मारकंडे, श्याम लाल, भैरों, खुदाबख्श, पलटू, रहमान, और सुनरिया गौ-निहारिन जैसे शायरों का नाम प्रसिद्ध था। इन गायकों ने कजली को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

mirzapur ki kajali

उर्मिला श्रीवास्तव और अजिता श्रीवास्तव का योगदान

मिर्जापुर की दो लोक गायिकाओं, उर्मिला श्रीवास्तव और अजिता श्रीवास्तव ने कजली गायन को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है।

उर्मिला श्रीवास्तव

उर्मिला श्रीवास्तव, जिन्हें कजरी साम्राज्ञी के नाम से जाना जाता है, ने मीरजापुरी कजली को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई। 

Kajli singer  urmila Shrivastava Padma Shri award

2024 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके 55 वर्षों के गायन सफर का सम्मान है। उन्होंने मिर्जापुर के आर्य कन्या इंटर कॉलेज में संगीत शिक्षिका के रूप में कार्य किया और भोजपुरी, कजरी, देवी गीत, दादरा, कहरवा, पूर्वी, चैती, होली, झूमर, खेमटा, बन्नी, सोहर, लचारी, और विदेसिया जैसी विधाओं में महारथ हासिल की।

Kajli singer  urmila Shrivastava mirzapur

उन्हें कई अन्य सम्मान भी प्राप्त हुए, जिनमें शामिल हैं:

  • उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की अकादमी रत्न सदस्यता
  • 1999 में विंध्य महोत्सव में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा सम्मान
  • महेंद्र मिसिर पुरवइया रत्न सम्मान, मारीशस (2009)
  • भिखारी ठाकुर सम्मान, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, ठाणे, मुंबई (2006)
  • अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन, दिल्ली (1993)
  • कर्मयोगी पुरस्कार, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, मारीशस (2009)

उर्मिला ने अपनी सफलता का श्रेय माँ विंध्यवासिनी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को दिया, जिन्होंने लोक कलाकारों को सम्मान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2022 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री पुरस्कार लेते हुए कजली गायिका अजिता श्रीवास्तव

कजरी को राष्ट्रीय मंच दिलाने वाली पद्मश्री अजिता श्रीवास्तव

मिर्जापुर की सांस्कृतिक विरासत कजरी को देश-विदेश तक पहचान दिलाने वाली लोक गायिका अजिता श्रीवास्तव को वर्ष 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

मिर्ज़ापुरी कजरी गायिका अजिता श्रीवास्तव

वाराणसी में जन्मी अजिता श्रीवास्तव ने मिर्जापुर को पहला पद्मश्री दिलाया। उन्होंने कजरी को पारंपरिक सीमाओं से निकालकर राष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाया। 

Kajli singer Ajita Shrivastava Padma Shri award

उनके उल्लेखनीय योगदानों के लिए उन्हें कजली कोकिला पुरस्कार, नारी शक्ति पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, सार्क एफओएसडब्लूएएल सम्मान, विश्व हिंदी शोध संवर्धन पुरस्कार, कजली साम्राज्ञी पुरस्कार, काशी आनंद सम्मान, नमामि जागृति सम्मान, और वैश्य गौरव सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

Mirzapuri Kajri gayika Ajita Srivastava

संस्कार भारती की अध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने लोक विधा के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से मिर्जापुर की कजरी को नई पहचान मिली और नवोदित कलाकारों को मंच मिला।

mirzapur Kajli singer Ajita Shrivastava  nidhan

उन्होंने कजली को गाँव-गलियों से निकालकर राष्ट्रीय मंचों तक पहुँचाया। दुर्भाग्यवश, 2024 में 70 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, जिससे लोक कला जगत को अपूरणीय क्षति हुई।

कजली की वर्तमान स्थिति

आधुनिकता और मनोरंजन के नए माध्यमों जैसे टीवी, सिनेमा, और आधुनिक संगीत के कारण कजली की लोकप्रियता में कमी आई है। 

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मिर्जापुर के लोक बिरहा गायक मन्नू यादव के अनुसार, सरकारी संरक्षण के अभाव और अश्लील गीतों की बढ़ती लोकप्रियता ने कजली अखाड़ों को प्रभावित किया है। 

फिर भी, उर्मिला श्रीवास्तव और अजिता श्रीवास्तव जैसे कलाकारों ने इसे जीवित रखने के लिए अनवरत प्रयास किए।

मीरजापुरी कजली: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मीरजापुरी कजली: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मीरजापुरी कजली क्या है?
मीरजापुरी कजली उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो सावन माह में गाया जाता है। यह श्रृंगार रस और भक्ति से भरा होता है।
कजली की उत्पत्ति कैसे हुई?
कजली की उत्पत्ति मिर्जापुर में माँ विंध्यवासिनी की भक्ति और कंतित की राजकुमारी कजली की प्रेम कहानी से मानी जाती है।
कजली तीज क्या है?
कजली तीज भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है, जब महिलाएँ रतजगा कर कजली गीत गाती हैं और माँ विंध्यवासिनी की पूजा करती हैं।
कजली अखाड़े क्या हैं?
कजली अखाड़े मिर्जापुर में गायन प्रतियोगिताओं के आयोजन हैं, जहाँ विभिन्न गायक अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
उर्मिला श्रीवास्तव कौन हैं?
उर्मिला श्रीवास्तव मिर्जापुर की प्रसिद्ध कजली गायिका हैं, जिन्हें 2024 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
कजली गायन की प्रमुख शैलियाँ क्या हैं?
कजली गायन में अधरबंद, बिना मात्रा, शीशापलट, गऊबंद, नालबंद, कमलबंद, और ककहरा जैसी शैलियाँ शामिल हैं।
कजली महोत्सव का महत्व क्या है?
कजली महोत्सव मिर्जापुर में कंतित की राजकुमारी कजली को श्रद्धांजलि देता है और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देता है।
कजली गीतों में किन भावों का समावेश होता है?
कजली गीतों में श्रृंगार रस, वियोग, प्रकृति वर्णन, और सामाजिक मुद्दों का चित्रण होता है।
मिर्जापुरी कजली अन्य कजरी से कैसे भिन्न है?
मिर्जापुरी कजली अपने प्रारंभिक परंपराओं और स्थानीय बोलचाल के कारण अन्य कजरी से भिन्न है।
कजली गायन का समय कब होता है?
कजली गायन मुख्य रूप से सावन और भाद्रपद मास में, विशेषकर कजली तीज के दौरान होता है।
अजिता श्रीवास्तव का कजली में योगदान क्या है?
अजिता श्रीवास्तव ने कजली को राष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई और 2022 में पद्मश्री प्राप्त की।
कजली अखाड़ों की संख्या कितनी है?
मिर्जापुर में छह प्रमुख कजली अखाड़े हैं: पंडित शिवदास, राममूरत, जहाँगीर, बफत, छवीराम, और बैरागी।
कजली गायन में रतजगा का क्या महत्व है?
रतजगा में महिलाएँ रातभर कजली गीत गाती हैं और माँ विंध्यवासिनी की पूजा करती हैं, जो सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है।
कजली की लोकप्रियता में कमी क्यों आई?
आधुनिक मनोरंजन साधनों और सरकारी संरक्षण के अभाव के कारण कजली की लोकप्रियता में कमी आई है।
कजली को संरक्षित करने के लिए क्या किया जा सकता है?
कजली को संरक्षित करने के लिए सरकारी संरक्षण, सांस्कृतिक आयोजन, और युवाओं को प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

निष्कर्ष

मीरजापुरी कजली उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है। इसकी उत्पत्ति माँ विंध्यवासिनी की भक्ति और कंतित की राजकुमारी कजली की प्रेम कहानी से जुड़ी है। 

अखाड़ों की परंपरा, विविध गायन शैलियाँ, और उर्मिला श्रीवास्तव व अजिता श्रीवास्तव जैसे कलाकारों के योगदान ने इसे एक अनूठी पहचान दी है।

 हालांकि, आधुनिकता के दौर में इसकी लोकप्रियता में कमी आई है, लेकिन इन कलाकारों के प्रयास इसे जीवित रख रहे हैं। कजली को संरक्षित करने के लिए सरकारी और सामुदायिक स्तर पर प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि यह सांस्कृतिक धरोहर भावी पीढ़ियों तक पहुँचे।

डिस्क्लेमर

यह लेख मीरजापुरी कजली के इतिहास और सांस्कृतिक महत्व को जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत करता है। इसमें दी गई जानकारी उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है और इसमें कोई कॉपीराइट सामग्री शामिल नहीं है। कृपया तथ्यों की पुष्टि के लिए प्रामाणिक स्रोतों का सहारा लें।

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