मिर्जापुर नागपंचमी मेला, दंगल और कथा
मिर्जापुर, गंगा के किनारे बसा एक प्राचीन शहर, जहां आस्था और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यह शहर अपनी धार्मिक परंपराओं, मंदिरों और उत्सवों के लिए जाना जाता है।
इनमें से एक है नागपंचमी, जो मिर्जापुर में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है।
नागपंचमी के दिन मिर्जापुर के हर कोने में भक्ति, उत्सव और परंपराओं का रंग बिखरता है। आइए, इस यात्रा में हम मिर्जापुर के नागपंचमी के उत्सव और उससे जुड़ी धार्मिक मान्यताओं को विस्तार से जानें।
मिर्जापुर नागपंचमी का धार्मिक महत्व
नागपंचमी का पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू शास्त्रों में नागों को देवता के रूप में पूजा जाता है।
मान्यता है कि नाग देवता प्रकृति के संरक्षक और शक्ति के प्रतीक हैं। मिर्जापुर में यह पर्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र प्राचीन काल में नागवंशी राजाओं की राजधानी पंपापुर के नाम से जाना जाता था।
मां विंध्यवासिनी को नागवंशी राजाओं की कुलदेवी माना जाता है, और इसीलिए यहां नागों की पूजा का विशेष महत्व है।
नागपंचमी का यह उत्सव भक्तों के लिए एक अवसर है, जब वे नाग देवता को दूध-लावा अर्पित करते हैं और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं।
मान्यता है कि इस दिन नाग देवता की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सर्पदंश का भय दूर होता है। मिर्जापुर के लोग इस पर्व को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामुदायिक एकता और परंपराओं को जीवित रखने के लिए भी उत्साहपूर्वक मनाते हैं।
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मिर्जापुर में नागपंचमी का उत्सव
मिर्जापुर के विभिन्न क्षेत्रों जैसे रैकरी, रैकरा, गुरुदेवनगर, धुरकर, पथरखुरा और अन्य इलाकों में नागपंचमी का उत्सव पूरे जोश के साथ मनाया जाता है।
सुबह से ही भक्त शिव मंदिरों में जुटने लगते हैं। मंदिरों में शिवलिंग पर जलाभिषेक और नाग देवता की प्रतिमाओं पर दूध चढ़ाने की परंपरा है। मंदिरों को फूलों, दीपों और रंगोली से सजाया जाता है, जिससे वहां का वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
गणेशगंज नागपंचमी का प्रसिद्ध मेला
नागपंचमी के दिन मिर्जापुर के गणेशगंज में लगने वाला मेला विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। इस मेले में शिव मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है।
गणेशगंज तिराहे पर स्थित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का दृश्य इस दिन देखते ही बनता है। मंदिर का दिव्य श्रृंगार और उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
इसके ठीक बगल में एक प्राचीन शिव मंदिर भी है, जो ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। यह मंदिर अपनी ऐतिहासिकता और सादगी के लिए जाना जाता है।
मेले में बच्चों के लिए झूले और खिलौनों की दुकानें लगती हैं, जो उनके लिए सबसे बड़ा आकर्षण होती हैं। भजन-कीर्तन और कजरी गायन की मधुर धुनें वातावरण को और भी रमणीय बना देती हैं।
मेले में स्थानीय व्यंजनों की दुकानें, हस्तशिल्प और अन्य सामग्रियों की बिक्री भी होती है, जो इस उत्सव को और भी रंगीन बनाती हैं।
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ऐतिहासिक नाग कुंड
मिर्जापुर के विंध्याचल क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक नाग कुंड इस पर्व का एक प्रमुख केंद्र है। यह कुंड प्राचीन काल में नागवंशी राजाओं की राजधानी का हिस्सा था।
मान्यता है कि इस कुंड से नागों के पाताल लोक जाने का रास्ता है। कुंड के चारों ओर पत्थर की बनी नाग प्रतिमाएं इसकी शोभा बढ़ाती हैं।
नागपंचमी के दिन यहां दूर-दूर से भक्त स्नान करने और दूध-लावा चढ़ाने आते हैं। हाल ही में इस कुंड का जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे इसकी सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व और बढ़ गया है।
अखाड़ों में दंगल और शारीरिक प्रदर्शन
नागपंचमी के अवसर पर मिर्जापुर के विभिन्न अखाड़ों में दंगल का आयोजन होता है। उपाध्याय का पोखरा, बरिया घाट, बदली घाट, किशुन प्रसाद की गली और घोड़े शहीद के महावीर अखाड़े में पहलवान अपनी शारीरिक शक्ति और कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
कुश्ती, गदा, नाल और जोड़ी फेर जैसे पारंपरिक खेलों में युवा अपनी हैरतअंगेज कला दिखाते हैं। इस दौरान विजेता पहलवानों को पुरस्कृत किया जाता है, जिससे उत्साह और भी बढ़ जाता है।
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इसके अलावा, खेल के मैदानों पर देशी कुड़ी डाक, कबड्डी और अन्य खेलों का आयोजन होता है। यह न केवल शारीरिक बल का प्रदर्शन है, बल्कि मिर्जापुर की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने का भी एक माध्यम है।
भटवा की पोखरी का नागदेवता मंदिर
मिर्जापुर के भटवा की पोखरी में स्थित नागदेवता मंदिर भी इस पर्व का एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां भक्त नाग देवता को दूध-लावा का भोग लगाते हैं और अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना करते हैं। इस मंदिर का शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
नागपंचमी की प्राचीन कथा: एक भावनात्मक यात्रा
नागपंचमी की परंपरा के पीछे एक प्राचीन और भावनात्मक कथा है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाती है। यह कहानी मिर्जापुर के लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह आस्था और विश्वास की गहराई को दर्शाती है।
प्राचीन काल में एक सेठ के सात पुत्र थे, जिनके विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी, जिसे लोग छोटी बहू कहते थे, न केवल सुशील और विदूषी थी, बल्कि उसका हृदय करुणा से भरा था। लेकिन उसका कोई भाई नहीं था, जिसके कारण वह अक्सर अकेलापन महसूस करती थी।
एक दिन, सेठानी ने घर को लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने का काम सभी बहुओं को सौंपा। मिट्टी खोदते समय वहां से एक सर्प निकला।
बड़ी बहू ने खुरपी उठाकर उसे मारने की कोशिश की, लेकिन छोटी बहू ने उसे रोक लिया। उसने कहा, "यह बेचारा निरपराध है, इसे मत मारो।
" उसकी करुणा को देखकर सर्प ने उसे नुकसान नहीं पहुंचाया और एक ओर चुपचाप बैठ गया। छोटी बहू ने सर्प से वादा किया कि वह जल्दी लौटकर आएगी और उसे वहां से न जाने को कहा।
लेकिन घर के कामों में उलझने के कारण वह अपना वादा भूल गई। अगले दिन जब उसे सर्प की बात याद आई, वह तुरंत उस स्थान पर पहुंची।
सर्प वही बैठा था, जैसे उसका इंतजार कर रहा हो। छोटी बहू ने सर्प से क्षमा मांगी और उसे "भैया" कहकर संबोधित किया। सर्प ने कहा, "तूने मुझे भाई कहा, इसलिए मैं तुझे छोड़ देता हूं, वरना तुझे डस लेता।" छोटी बहू ने भावुक होकर कहा, "भैया, मेरा कोई नहीं था। अब तुम मेरे भाई हो।"
कुछ समय बाद, सर्प मानव रूप में छोटी बहू के घर आया और उसे अपने साथ ले गया। उसने रास्ते में बताया कि वह वही सर्प है और उसे डरने की जरूरत नहीं।
सर्प के घर पहुंचकर छोटी बहू उसके धन-ऐश्वर्य को देखकर चकित रह गई। एक दिन, सर्प की मां ने उसे अपने बेटे को ठंडा दूध पिलाने को कहा, लेकिन गलती से उसने गर्म दूध पिला दिया, जिससे सर्प का मुंह जल गया।
सर्प की मां क्रोधित हुई, लेकिन सर्प ने उसे शांत किया और छोटी बहू को ढेर सारा धन, सोना-चांदी और आभूषण देकर घर वापस भेज दिया।
घर लौटने पर बड़ी बहू ने ईर्ष्या में उससे और धन मांगने को कहा। सर्प ने उसकी बात मानकर सोने की झाड़ू तक दे दी। छोटी बहू को सर्प ने एक अनमोल हीरे-मणियों का हार भी दिया।
जब रानी ने वह हार मांग लिया, तो छोटी बहू ने सर्प से प्रार्थना की कि हार रानी के गले में सर्प बन जाए। ऐसा ही हुआ, और रानी डर गई। अंततः हार छोटी बहू को लौटा दिया गया, और राजा ने उसे पुरस्कृत किया।
जब छोटी बहू के पति ने उस पर संदेह किया, तो सर्प प्रकट हुआ और उसकी रक्षा की। उसने कहा, "मेरी धर्म बहन पर संदेह करने वाला मेरा शत्रु है।
" इस घटना के बाद से नागपंचमी का पर्व मनाया जाने लगा, जिसमें स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं। यह कहानी भाई-बहन के अटूट रिश्ते और विश्वास की शक्ति को दर्शाती है।
मिर्ज़ापुर में नागपंचमी: 15 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
निष्कर्ष
मिर्जापुर में नागपंचमी का उत्सव एक ऐसा अवसर है, जो आस्था, परंपरा और सामुदायिक एकता को एक साथ लाता है। गणेशगंज का मेला, नाग कुंड की पूजा, अखाड़ों में दंगल और भटवा की पोखरी का नागदेवता मंदिर, सभी इस पर्व को अविस्मरणीय बनाते हैं। इसके साथ ही, नागपंचमी की प्राचीन कथा हमें करुणा, विश्वास और भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की याद दिलाती है। मिर्जापुर की यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि एक सांस्कृतिक और भावनात्मक उत्सव भी है, जो हर भक्त के हृदय को छू लेता है।