मवैया देवी धाम, सीखड़, मिर्जापुर: मां विंध्यवासिनी का चमत्कारी तीर्थ स्थल
मिर्ज़ापुर यात्रा ब्लॉग में आपका स्वागत है! यदि आप मिर्जापुर में धार्मिक स्थलों की तलाश में हैं, तो मवैया देवी धाम, सीखड़ आपके लिए एक अद्भुत अनुभव साबित होगा।
मिर्जापुर मुख्यालय से मात्र 45 किमी दूर, चुनार किले के दूसरी ओर गंगा तट पर स्थित यह मंदिर मां विंध्यवासिनी के स्वरूप का पवित्र स्थल है।
यहां दूर-दूर से भक्त मां का दर्शन-पूजन करने आते हैं, खासकर मंगलवार, पूर्णिमा और नवरात्रि में। इस लेख में हम मवैया देवी धाम के इतिहास, किवदंती, धार्मिक महत्व और यात्रा टिप्स पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
यदि आप मिर्जापुर में घूमने की जगहें या मां विंध्यवासिनी मंदिर खोज रहे हैं, तो यह आर्टिकल आपकी पूरी मदद करेगा!
मवैया देवी धाम का परिचय
मवैया देवी धाम मिर्जापुर के सीखड़ क्षेत्र में मवैया गांव में गंगा नदी के तट पर बसा है। यह मंदिर मां विंध्यवासिनी के स्वरूप में स्थापित है, जहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में क्षेत्रवासियों के सहयोग से किया गया है, जो पूरे इलाके के लिए गौरव का विषय है।
मंदिर की दीवारों पर सिक्के चिपकाने की परंपरा प्रसिद्ध है, जो भक्तों की आस्था का प्रतीक है। प्रवेश द्वार पर कलाकृतियों से सजी दीवारें दर्शकों को मोहित कर लेती हैं।
- मंदिर परिसर में कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं:
श्री शनि देव जी का मंदिर: भक्त यहां शनि देव की पूजा कर अपने दोषों का निवारण करते हैं।
शीतल जल का कुआं: प्रांगण में स्थित यह कुआं भक्तों की प्यास बुझाने का स्रोत है, जो गर्मियों में विशेष राहत प्रदान करता है।
अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां: परिसर में कई देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जो आध्यात्मिक वातावरण को और समृद्ध बनाती हैं।
श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता और हनुमान जी का मंदिर: यहां राम परिवार की पूजा का विशेष महत्व है।
सुंदर सजावट: मंदिर का सुंदरीकरण संगमरमर से किया गया है, जो इसे और अधिक आकर्षक बनाता है।
यहां आने वाले भक्तों को कभी निराशा नहीं मिलती। मां के दरबार में सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है, और यहां की शांति आत्मा को छू लेती है।
मवैया देवी की किवदंती: एक भावुक भक्ति की कहानी
किवदंतियां हमें अतीत की उन घटनाओं से जोड़ती हैं जो चमत्कारों से भरी होती हैं। मवैया वाली मां विंध्यवासिनी की कहानी लगभग पांच सौ वर्ष पुरानी है, जो उनके अनन्य भक्त बंगाली बाबा की गहन भक्ति से जुड़ी है। आइए, इसे एक भावुक कहानी की तरह सुनाते हैं...
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कल्पना कीजिए, पांच सौ वर्ष पहले का वह समय। मवैया गांव के एक मठ में रहने वाले बंगाली बाबा मां विंध्यवासिनी के परम भक्त थे।
हर रोज, चाहे धूप हो या बारिश, वे पैदल ही विंध्याचल जाकर मां का दर्शन करते। उनकी आंखों में मां के लिए अटूट प्रेम था, और दिल में सिर्फ एक ही धुन – मां के चरणों में समर्पण।
लेकिन समय की मार से कोई नहीं बचता। उम्र बढ़ने के साथ बंगाली बाबा बीमार पड़ गए। उनके पैर अब इतनी लंबी यात्रा करने लायक नहीं रहे।
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बिस्तर पर लेटे-लेटे उनका दिल रो रहा था। "हे मां, अब मैं आपके दर्शन कैसे करूंगा? मेरी जिंदगी का एकमात्र सहारा आप ही तो हैं," वे रात-दिन यही सोचकर व्याकुल हो जाते।
- पश्चाताप की आग में जलते हुए उनकी आंखों से आंसू बहते रहते।
फिर एक रात, चमत्कार हुआ। मां विंध्यवासिनी स्वयं बंगाली बाबा के स्वप्न में आईं। उनकी मधुर आवाज में करुणा थी – "बेटा, क्यों इतना दुखी हो? मैं तुम्हारी विवशता समझती हूं।
मैं यहीं हूं, हंसा के वृक्ष के नीचे। भूमि खोदो और मुझे बाहर निकालो।" बंगाली बाबा जागे, लेकिन उन्होंने इसे एक सपना मानकर भुला दिया।
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समय बीता, और वे थोड़े स्वस्थ हुए। फिर से विंध्याचल जाने की कोशिश की, लेकिन दोबारा बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया। अब तो उनका दिल टूट रहा था। "मां, अब तो मैं कभी आपके पास नहीं पहुंच पाऊंगा," वे रात-रात भर जागकर रोते।
- मां तो मां होती है – भक्तों की पीड़ा सहन नहीं कर सकती।
नवरात्रि की एक रात, मां फिर स्वप्न में आईं। इस बार उनकी आवाज में दृढ़ता थी: "क्यों व्यर्थ परेशान हो रहे हो? अब तुम उतनी दूर नहीं आ पाओगे।
मैं यहीं हूं, हंसा के वृक्ष के नीचे। मुझे निकालो, यहीं स्थापित करो। मैं तुम्हारे साथ हूं, और पूरे गांव का कल्याण करूंगी।" इस बार बंगाली बाबा ने सपने को सत्य माना।
सुबह होते ही उन्होंने गांववालों को बताया। सभी उत्साहित होकर हंसा वृक्ष के पास खुदाई शुरू की। और वहां क्या मिला? मां विंध्यवासिनी की एक विशाल, भव्य प्रतिमा! आंसूओं से भरी आंखों से बंगाली बाबा ने मां को पीपल की छांव में स्थापित किया और विधि-विधान से पूजा शुरू की।
इस कहानी में भक्ति की ताकत, मां की करुणा, और चमत्कार का ऐसा मेल है कि सुनकर दिल भर आता है।
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आज भी मंदिर के पुजारी पं. दुक्खी राम चौबे और पं. दिनेश चौबे बताते हैं कि मां मवैया देवी सबकी रक्षा करती हैं। यहां आने वाला कोई भक्त खाली नहीं लौटता – मां की कृपा से हर दुख दूर होता है।
मवैया देवी धाम का धार्मिक महत्व
मवैया देवी धाम एक सिद्धपीठ है, जहां मां विंध्यवासिनी के अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन होते हैं, खासकर नवरात्रि में। प्रत्येक मंगलवार और पूर्णिमा को यहां भक्तों का मेला लगता है।
भक्त बताते हैं कि मां के चरण स्पर्श से जीवन में सुख-शांति आती है। यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा इतनी प्रबल है कि भक्तों को तत्काल राहत मिलती है। नवरात्रि में मां के नौ रूपों की पूजा विशेष महत्व रखती है, और यहां की आरती देखते ही बनती है।
मवैया देवी धाम की यात्रा कैसे करें?
स्थान: मवैया देवी धाम मिर्जापुर से 45 किमी दूर, चुनार किले के पास गंगा तट पर स्थित है।
कैसे पहुंचें:
- ट्रेन से: निकटतम स्टेशन चुनार जंक्शन या मिर्जापुर है। यहां से टैक्सी या बस से मवैया गांव पहुंचें।
- सड़क मार्ग: मिर्जापुर से सीधे बस या निजी वाहन उपलब्ध हैं। गंगा तट होने से रास्ता मनोरम है।
सर्वोत्तम समय: नवरात्रि (चैत्र और शारदीय), मंगलवार, और पूर्णिमा के दौरान। सामान्य दर्शन के लिए अक्टूबर से मार्च का समय आदर्श है।
यात्रा टिप्स:
- आरामदायक कपड़े और जूते पहनें, क्योंकि मंदिर गंगा तट पर है।
- नवरात्रि में भीड़ अधिक होती है, इसलिए पहले से योजना बनाएं।
- सिक्के चिपकाने की परंपरा का अनुभव जरूर लें।
- फोटोग्राफी के लिए अनुमति लें।
आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल
- चुनार किला: ऐतिहासिक किला, जहां से गंगा का सुंदर दृश्य दिखता है।
- विंध्यवासिनी मंदिर: मूल विंध्याचल धाम, मिर्जापुर से 70 किमी दूर।
- गंगा घाट: मवैया के पास ही गंगा स्नान का अवसर।
- कोटारनाथ मंदिर: शिव भक्तों के लिए निकट का तीर्थ।
निष्कर्ष मवैया देवी धाम
मवैया देवी धाम, सीखड़, मिर्जापुर मां विंध्यवासिनी की कृपा और बंगाली बाबा की भक्ति का जीवंत प्रतीक है। यहां की किवदंती और आध्यात्मिक शक्ति हर भक्त को आकर्षित करती है।
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यदि आप मिर्जापुर में धार्मिक स्थल या मां विंध्यवासिनी दर्शन की योजना बना रहे हैं, तो यह जगह अवश्य जाएं। मां की कृपा से आपका जीवन सुखमय हो!
मवैया देवी धाम, सीखड़ - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Disclaimer:
इस लेख की जानकारी धार्मिक और ऐतिहासिक स्रोतों पर आधारित है। यात्रा से पहले स्थानीय नियमों और व्यवस्थाओं की पुष्टि करें।
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