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बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर: इतिहास, मान्यताएं, वास्तुकला और दर्शन गाइड | मिर्जापुर यात्रा

बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर: इतिहास, मान्यताएं, वास्तुकला और दर्शन गाइड | मिर्जापुर यात्रा

नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग "मिर्जापुर यात्रा" में। अगर आप मिर्जापुर की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक यात्रा पर निकले हैं, तो बूढ़ेनाथ मंदिर का नाम जरूर सुना होगा।

यह मंदिर न केवल मिर्जापुर की शान है, बल्कि शिव भक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल भी। आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर के बारे में विस्तार से बात करेंगे – इसका प्राचीन इतिहास, पौराणिक मान्यताएं, काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ाव, वास्तुकला की बारीकियां, उत्सव और दर्शन की पूरी गाइड।

अगर आप "बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर दर्शन" या "मिर्जापुर के प्राचीन मंदिर" सर्च कर रहे हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए परफेक्ट है।

मिर्जापुर, जो विंध्य पर्वत की गोद में बसा है, शिव और शक्ति का केंद्र माना जाता है। यहां मां विंध्यवासिनी शक्ति के रूप में विराजमान हैं, तो बूढ़ेनाथ महादेव शिव के रूप में भक्तों का कल्याण करते हैं।

Budhenath Mandir Mirzapur

सावन माह में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है, और महाशिवरात्रि पर तो मंदिर एक उत्सव स्थल बन जाता है। इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करेंगे इस मंदिर की हर पहलू पर, ताकि आपकी यात्रा यादगार बने। चलिए शुरू करते हैं!

Budhenath Mandir shivling Mirzapur

बूढ़ेनाथ मंदिर का परिचय: मिर्जापुर की आध्यात्मिक धरोहर

बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर जिले के टेढ़ीनीम के पास स्थित है, जो सत्ती रोड पर है। यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है और मिर्जापुर के इतिहास से गहराई से जुड़ा हुआ है।

Mahant dr yogananda giri Budhenath Mandir Mirzapur

मंदिर के पुजारी और महंत डॉ. योगानंद गिरि जी बताते हैं कि यह मंदिर तब से अस्तित्व में है, जब मिर्जापुर को गिरजापुर कहा जाता था। गिरजापुर नाम माता पार्वती (गिरजा) से जुड़ा है, और यह जगह सातवीं शताब्दी से प्रचलित है।

मंदिर का मुख्य आकर्षण है शिवलिंग, जो बूढ़ेनाथ महादेव के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव दिन में काशी विश्वनाथ मंदिर में निवास करते हैं और रात में आराम करने के लिए मिर्जापुर के इस मंदिर में आते हैं।

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इसलिए, इसे "बाबा विश्वनाथ का घर" भी कहा जाता है, जबकि काशी को "दुआर" माना जाता है। अगर आप शिव भक्त हैं, तो बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर दर्शन आपके लिए अनिवार्य है।

  • यहां दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और भक्त गंगा जल, धतूरा, फूल और दूध चढ़ाते हैं।

मंदिर की लोकप्रियता ऐसी है कि दूर-दूर से भक्त आते हैं – उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से लेकर नेपाल और अन्य राज्यों से।

Budhe nath  Mandir in Mirzapur

भक्त राजन गुप्ता जैसे लोग बताते हैं कि बाबा के दर्शन से मनोवांछित फल मिलता है। ओम शंकर गिरी और संस्कृति शर्मा जैसे भक्त भी इस मंदिर की प्राचीनता और महत्व की सराहना करते हैं।

  • सावन, शिवरात्रि और सोमवार को यहां विशेष भीड़ होती है।

बूढ़ेनाथ मंदिर का इतिहास: सातवीं शताब्दी से जुड़ी कहानी

बूढ़ेनाथ मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है। चेतसिंह विलास नामक ग्रंथ में इस मंदिर का जिक्र है, जहां काशी विश्वनाथ से इसका जुड़ाव वर्णित है। इस ग्रंथ की पांडुलिपि नागरी प्रचारिणी सभा, काशी में संरक्षित है।

  • जिसके अनुसार, गिरजापुर (वर्तमान मिर्जापुर) की स्थापना सातवीं शताब्दी में बनारस के राजा बन्नार ने की थी।
  • प्राचीन नाम: पहले इस मंदिर को वृद्धेश्वरनाथ कहा जाता था, और काशी विश्वनाथ को विश्वेश्वर।

समय के साथ नाम बदल गए, लेकिन महत्व वही रहा। मंदिर की सेवा नागा सन्यासियों द्वारा की जाती रही है।अखाड़ा (पहले दशनामी अखाड़ा, फिर भैरो अखाड़ा) से जुड़े सन्यासी यहां पूजा-अर्चना करते हैं।

  • 1860 में ब्रिटिश काल में इसका जूना पंजीकरण हुआ।

वर्तमान में महंत डॉ. योगानंद गिरि जी के मार्गदर्शन में मंदिर की व्यवस्था चल रही है। यहां वेदपाठ, कर्मकांड और सनातन ज्ञान की शिक्षा दी जाती है।

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जीर्णोद्धार की कहानी: मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ-साथ यहां भी हुआ।

  • रीवां, डुमरांव और काशी रियासतों के राजाओं ने देखरेख की।
जम्मू-कश्मीर के राजा अमर सिंह (महाराजा हरि सिंह के पिता) ने अष्टधातु का घंटा दान किया, जबकि नेपाल नरेश वीरेंद्र के पूर्वजों ने दूसरा घंटा भेंट किया। ये घंटे आज भी मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं।

हाल की सजावट: मंदिर को स्वर्ण और रजत से सुशोभित किया गया है। हाल ही में चार स्तंभों पर 95 किलो चांदी की परत चढ़ाई गई, जिसका कार्य वाराणसी के कारीगरों ने दो महीने में पूरा किया।

Budhe nath ka Mandir  Mirzapur

अरघे पर एक किलो सोना की पच्चीकारी की तैयारी है। मंडपाकार हिस्से के लिए 45 किलो चांदी चंडीगढ़ भेजी गई। यह सब मंदिर को नव्य-भव्य बनाता है।

Budhenath ka Mandir  Mirzapur

पौराणिक मान्यताएं: शिव और पार्वती की विश्राम स्थली

बूढ़ेनाथ मंदिर की मान्यताएं शिव-पार्वती की कथा से जुड़ी हैं। पौराणिक कथा अनुसार, काशी की स्थापना भगवान शिव के आदेश पर विश्वकर्मा ने उनके त्रिशूल के अग्र भाग पर की।

कैलाश से काशी जाते समय माता पार्वती ने जिद की कि वे भी साथ जाएंगी, क्योंकि पुरुष के बिना नारी अधूरी है।

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शिव ने समझाया, लेकिन पार्वती नहीं मानीं। तब शिव ने विश्वकर्मा को त्रिशूल के पूच्छ भाग पर गिरजापुर बनाने का आदेश दिया, जहां पार्वती विश्राम करेंगी।

इसके बाद शिव पार्वती को काशी घुमाकर गिरजापुर में छोड़ आए और वचन दिया कि वे प्रतिदिन रात में यहां विश्राम करेंगे और दिन में काशी में भक्तों की सुनवाई करेंगे।

इसलिए, बूढ़ेनाथ मंदिर को शिव का "घर" और काशी को "दुआर" कहा जाता है। शिव नंदी पर सवार होकर आते हैं और पार्वती से मिलते हैं। भक्तों की मुरादें यहां पूरी होती हैं।

Mirzapur  Budhe nath Mandir

एक श्लोक में कहा गया है:

"जो चाहत सुख, सुयश, श्री, सम्पति, सद्गति, साथ सेवहिं सहित सनेह निज शिव श्री बूढ़ेनाथ"।

दुसरे श्लोक में कहा गया है:

"गिरिजापुरवासी जनही करत सदैव सनाथ, वृद्धेश्वर उपनाम पुनि शिव श्री बूढ़ेनाथ"।

ये श्लोक मंदिर की महिमा बताते हैं।

Budhenath Mandir ganesh ji hanuman ji Mirzapur

महंत योगानंद गिरि जी बताते हैं कि यहां अनुष्ठान का तत्काल प्रभाव मिलता है।

वास्तुकला और आकर्षण: नक्काशी की अद्भुत दुनिया

Budhenath Temple in Mirzapur satti rode 1

बूढ़ेनाथ मंदिर की वास्तुकला शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है।

Mirzapur  Budhenath Mandir 1

मंदिर में प्रवेश करते ही मुख्य द्वार पर परियों और मानव आकृतियों की नक्काशी दिखती है, जिनके हाथों में पखावज, मृदंग, सितार, शहनाई जैसे वाद्ययंत्र हैं। मानो वे भक्तों का स्वागत कर रही हों।

Mirzapur  Budhenath Mandir

  • अंदर मुख्य शिवलिंग है, जो बूढ़ेनाथ महादेव का प्रतीक है।

Budhenath Mandir Mirzapur 4

चार मोटे खंभों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं। इन खंभों पर हाल ही में चांदी की पच्चीकारी हुई है।

Budhenath Mandir satti rode Mirzapur

मंदिर में कई शिवलिंग क्रमबद्ध लाइन में स्थापित हैं। साथ ही मां गिरिजा देवी, गणेश, हनुमान और राधा कृष्णा (बांकेबिहारी) के छोटे मंदिर हैं।

Budhenath Mandir ashtdhatu murti Mirzapur

  • प्राचीन अष्टधातु की मूर्तियां विशेष अवसरों पर बाहर लाई जाती हैं।

Budhenath Mandir Mirzapur satti rode

  • दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हैं, जो मंदिर को दिव्य बनाते हैं।

Budhenath Mandir yagya shala Mirzapur

यज्ञशाला है, जहां महंत और भक्त बैठते हैं। पूरा मंदिर पत्थरों की नक्काशी से सजा है, जो बोलती प्रतीत होती हैं। स्वर्ण-रजत की सजावट से मंदिर चमकता है।

Budhenath Mandir ashtdhatu ghanta Mirzapur

दो बड़े अष्टधातु घंटे – एक कश्मीर से, दूसरा नेपाल से – मंदिर प्रांगण में हैं। ये घंटे बजाने पर गूंजती ध्वनि आध्यात्मिक अनुभव देती है।

Budhenath Temple bhaiv ji Mirzapur

मंदिर के मुख्यद्वार के बगल में स्थित हैं भैरव जी का मंदिर जिन्हें बूढ़ेनाथ बाबा के पहरेदार (कोतवाल) के रूप में हैं

Mirzapur Budhenath baba Mandir ka shringar

मंदिर का श्रृंगार अलग-अलग रूपों में किया जाता है, खासकर उत्सवों पर।

उत्सव और पूजा: सावन से महाशिवरात्रि तक

Mirzapur  Budhenath Mandir palki yatra

बूढ़ेनाथ मंदिर में उत्सवों की धूम रहती है। सावन माह में हजारों भक्त दर्शन करते हैं। सोमवार को विशेष पूजा होती है। महाशिवरात्रि पर भव्य पालकी यात्रा निकलती है, जहां वृद्धेश्वर नाथ और मां गिरजा देवी पालकी पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं।

Mirzapur Budhenath baba Mandir palaki yatra

घोड़े, ढोल-नगाड़े के साथ भक्त थिरकते हैं। यह यात्रा पूरे मिर्जापुर में घूमती है और मंदिर लौटती है।

Budhenath baba Mandir palaki yatra Mirzapur

मान्यता है कि इस यात्रा से मिर्जापुर वासी अनाथ नहीं रहते, प्रभु की छत्रछाया मिलती है। प्राचीन समय से यह परंपरा चली आ रही है।

Mirzapur  Budhenath Mandir jhaki

  • शिवरात्रि पर दर्शन से दुख दूर होते हैं। भक्त गंगा स्नान कर पूजा करते हैं।

काशी विश्वनाथ से जुड़ाव: दो मंदिरों की अनोखी कहानी

बूढ़ेनाथ मंदिर का काशी विश्वनाथ से गहरा जुड़ाव है। जैसा कि चेतसिंह विलास में उल्लेख है, शिव दिन में काशी में भक्तों का कल्याण करते हैं और रात में मिर्जापुर में आराम।

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इसलिए, दोनों मंदिर पूरक हैं। पहले नाम वृद्धेश्वर और विश्वेश्वर थे। जीर्णोद्धार भी साथ हुआ। यह जुड़ाव मिर्जापुर को आध्यात्मिक नगरी बनाता है।

कैसे पहुंचें बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर: यात्रा गाइड

मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से मंदिर 5-7 किमी दूर है। ऑटो या टैक्सी से पहुंचें। वाराणसी से 60 किमी, प्रयागराज से 80 किमी। गंगा घाट पर स्नान कर मंदिर आएं।

  • समय: सुबह 5 से रात 9 बजे तक। सावन में भीड़, इसलिए सुबह जल्दी आएं।
  • टिप्स: जल, फूल साथ लाएं। फोटोग्राफी अनुमति लें। आसपास विंध्यवासिनी मंदिर भी घूमें।
बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर - FAQ

बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर - FAQ

बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर कहाँ स्थित है?
बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर जिले के टेढ़ीनीम के पास, सत्ती रोड पर स्थित है, जो गंगा नदी के किनारे है। यह मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से 5-7 किमी दूर है।
बूढ़ेनाथ मंदिर का इतिहास क्या है?
यह सातवीं शताब्दी का मंदिर है, जब मिर्जापुर को गिरजापुर कहा जाता था। चेतसिंह विलास में इसका उल्लेख है, और इसे बनारस के राजा बन्नार ने स्थापित किया था।
बूढ़ेनाथ मंदिर का काशी विश्वनाथ से क्या संबंध है?
मान्यता है कि भगवान शिव दिन में काशी विश्वनाथ में भक्तों का कल्याण करते हैं और रात में बूढ़ेनाथ मंदिर में विश्राम करते हैं। इसे शिव का 'घर' और काशी को 'दुआर' कहा जाता है।
बूढ़ेनाथ मंदिर की वास्तुकला कैसी है?
मंदिर में पत्थरों पर नक्काशी, अष्टधातु के घंटे, और स्वर्ण-रजत पच्चीकारी है। चार खंभों पर चांदी की परत और शिवलिंग के साथ गणेश, हनुमान की मूर्तियां हैं।
बूढ़ेनाथ मंदिर में कौन-कौन से उत्सव मनाए जाते हैं?
सावन माह, महाशिवरात्रि, और सोमवार को विशेष पूजा होती है। महाशिवरात्रि पर भव्य पालकी यात्रा निकलती है, जिसमें ढोल-नगाड़ों के साथ भक्त शामिल होते हैं।
बूढ़ेनाथ मंदिर के पुजारी कौन हैं?
वर्तमान में महंत डॉ. योगानंद गिरि जी मंदिर की देखरेख करते हैं। वे जूना अखाड़ा से जुड़े हैं और वेदपाठ, कर्मकांड की शिक्षा देते हैं।
मंदिर में अष्टधातु के घंटों का क्या महत्व है?
मंदिर में दो अष्टधातु के घंटे हैं, जो कश्मीर और नेपाल के राजाओं ने दान किए। ये मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं।
बूढ़ेनाथ मंदिर में पूजा के लिए क्या लाना चाहिए?
भक्त गंगा जल, धतूरा, फूल, और दूध लाते हैं। यह पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है।
बूढ़ेनाथ मंदिर कैसे पहुंचें?
मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से ऑटो/टैक्सी से 5-7 किमी में मंदिर पहुंचा जा सकता है। वाराणसी (60 किमी) और प्रयागराज (80 किमी) से भी आसानी से पहुंचें।
मंदिर का समय क्या है?
मंदिर सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। सावन और शिवरात्रि पर समय बढ़ सकता है।
बूढ़ेनाथ मंदिर में फोटोग्राफी की अनुमति है?
फोटोग्राफी के लिए मंदिर प्रबंधन से अनुमति लेनी चाहिए। कुछ क्षेत्रों में प्रतिबंध हो सकता है।
मंदिर के पास अन्य दर्शनीय स्थल कौन से हैं?
मां विंध्यवासिनी मंदिर, चुनार का किला, और विंधम फॉल्स पास में हैं। गंगा घाट पर स्नान भी कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि पर क्या विशेष होता है?
महाशिवरात्रि पर भव्य पालकी यात्रा निकलती है, जिसमें वृद्धेश्वर नाथ और मां गिरजा देवी नगर भ्रमण करते हैं।
मंदिर की स्थापना किसने की?
मंदिर की स्थापना बनारस के राजा बन्नार ने सातवीं शताब्दी में की थी। इसका उल्लेख चेतसिंह विलास में है।
बूढ़ेनाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
यह मंदिर शिव-पार्वती की विश्राम स्थली, काशी विश्वनाथ से जुड़ाव, और प्राचीन वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।

निष्कर्ष: बूढ़ेनाथ मंदिर – शिव की शाश्वत कृपा

बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर न केवल एक मंदिर है, बल्कि इतिहास, मान्यता और आस्था का संगम। यहां दर्शन से सुख, समृद्धि और सद्गति मिलती है।

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अगर आप मिर्जापुर यात्रा पर हैं, तो इसे मिस न करें। इस ब्लॉग से आपको पूरी जानकारी मिली होगी। कमेंट में अपनी यात्रा अनुभव शेयर करें। जय बूढ़ेनाथ महादेव!

 बूढ़ेनाथ मंदिर  की झलकियाँ 

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