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प्राचीन सारनाथ महादेव मंदिर: मिर्जापुर, कछवां का रहस्यमयी शिव धाम

प्राचीन सारनाथ महादेव मंदिर: मिर्जापुर के लरवक गांव में आस्था और रहस्य का संगम

मिर्जापुर की पवित्र धरती पर बसा लरवक गांव, जहां हर साल सावन के महीने में भक्तों का सैलाब उमड़ता है, एक अनोखे और प्राचीन धाम का घर है—सारनाथ महादेव मंदिर। यह मंदिर न केवल भगवान शिव के भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास, रहस्य और स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना भी है।

क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर की दीवारों पर लिखे देवनागरी शब्द आज तक कोई नहीं पढ़ सका? या फिर यह मंदिर चुनार किले से एक गुप्त सुरंग से जुड़ा हुआ माना जाता है?

  • औरंगजेब के हमले की कहानी और 1978 की गंगा बाढ़ का चमत्कार इस मंदिर को और भी खास बनाते हैं।

अगर आप मिर्जापुर की यात्रा की योजना बना रहे हैं या धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के शौकीन हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए है। आइए, इस प्राचीन शिव धाम की यात्रा पर चलते हैं और इसके हर पहलू को जानते हैं।

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मंदिर का इतिहास: रहस्यों से भरा एक प्राचीन धाम

सारनाथ महादेव मंदिर का इतिहास आज भी रहस्यों से घिरा हुआ है। मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया, इसकी कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है।

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स्थानीय पुजारी नंदलाल गोस्वामी के अनुसार, यह मंदिर सातवीं शताब्दी का है। वहीं, कुछ इतिहासकार और पुरातत्व विशेषज्ञ इसे 10वीं-12वीं शताब्दी का मानते हैं, जो इसकी नागर शैली की स्थापत्य कला पर आधारित है।

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कुछ स्थानीय किंवदंतियों में इसे 3000 साल पुराना बताया जाता है, जो मंदिर की प्रस्तरकला और दीवारों पर उकेरे गए शिलालेखों के आधार पर अनुमानित है।

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मंदिर का नाम "सारनाथ" वाराणसी के प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थल सारनाथ से भिन्न है, लेकिन दोनों में शिव की उपस्थिति और आध्यात्मिक महत्व का गहरा जुड़ाव महसूस होता है।

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मंदिर का सबसे चर्चित ऐतिहासिक प्रसंग सन 1669 का है, जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने इस पर हमला किया।

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पुजारी नंदलाल गोस्वामी बताते हैं कि औरंगजेब ने नंदी की मूर्ति का सिर तलवार से काट दिया और अन्य विग्रहों को भी क्षति पहुंचाई।

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मंदिर की दीवारों पर लिखे कुछ शब्द उस दौर की घटनाओं का जिक्र करते हैं, लेकिन इन्हें आज तक कोई नहीं पढ़ सका। पुरातत्व विभाग के संरक्षणकर्मी आनंद पटेल भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये शिलालेख आज भी एक अनसुलझा रहस्य हैं।

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एक और रोचक कहानी 1978 की गंगा बाढ़ से जुड़ी है। उस समय गंगा नदी रौद्र रूप में थी और स्थानीय लोगों का मानना है कि वह मंदिर में शिवलिंग को जल चढ़ाने आई थी।

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यह घटना भक्तों के लिए चमत्कार से कम नहीं। इसके अलावा, मंदिर का चुनार किले से जुड़ाव भी चर्चा का विषय है। कुछ लोग कहते हैं कि चुनार किले में एक शिलापट्ट है, जिसमें "सारनाथ महादेव जाने का मार्ग" लिखा है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी।

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फिर भी, मंदिर की दीवारों पर बने चित्र चुनार किले के चित्रों से मिलते-जुलते हैं। एक और अफवाह है कि मंदिर से चुनार किले तक एक गुप्त सुरंग है, जो इसे और रहस्यमयी बनाती है।

स्थापत्य कला: पत्थरों में उकेरी गई कहानियां

सारनाथ महादेव मंदिर पूरी तरह पत्थरों से निर्मित है, जिसमें किसी सीमेंट या जोड़ का उपयोग नहीं हुआ। इसकी नागर शैली की वास्तुकला 10वीं-12वीं शताब्दी के मंदिरों की याद दिलाती है।

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गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के चारों ओर दीवारों पर देवनागरी लिपि में शब्द और जटिल नक्काशी उकेरी गई है। ये शिलालेख आज तक अनपढ़े हैं, जो मंदिर को एक रहस्यमयी आकर्षण प्रदान करते हैं।

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दीवारों पर बने चित्रों में देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और प्राकृतिक दृश्यों की झलक मिलती है, जो चुनार किले की कला से समानता रखते हैं।

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मंदिर का गर्भगृह छोटा लेकिन भव्य है, जहां शिवलिंग के दर्शन से भक्तों को शांति मिलती है।

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  • नंदी की खंडित मूर्ति आज भी मंदिर के इतिहास और औरंगजेब के हमले की गवाही देती है।

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मंदिर का बाहरी हिस्सा पत्थरों की मजबूती और कारीगरी का शानदार उदाहरण है। पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है, जिससे इसकी देखरेख और संरक्षण सुनिश्चित होता है।

धार्मिक महत्व: भक्तों की आस्था का केंद्र

सारनाथ महादेव मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है। स्थानीय भक्त मनोज तिवारी और पत्ती देवी, जो तीसरी पीढ़ी से यहां दर्शन कर रहे हैं, बताते हैं कि इस मंदिर में हर मनोकामना पूरी होती है।

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खासकर सावन माह में, जब मंदिर में मेले का आयोजन होता है, दूर-दूर से भक्त यहां जल चढ़ाने और दर्शन करने आते हैं। हर सोमवार को भी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

स्थानीय मान्यता है कि यहां दर्शन करने से हर मनोरथ सिद्ध होता है। सावन के मेले में रंग-बिरंगे स्टॉल, भक्ति भजनों की गूंज और भक्तों का उत्साह मंदिर परिसर को जीवंत बना देता है।

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पुजारी नंदलाल गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में कई चमत्कारिक घटनाएं हुई हैं, जैसे 1978 की बाढ़, जिसे भक्त गंगा माता का आशीर्वाद मानते हैं।

पुनर्विकास: आधुनिकता और संस्कृति का संगम

हाल के वर्षों में, लरवक गांव के ब्लॉक प्रमुख दिलीप सिंह और कई ग्राम प्रधानों ने मंदिर परिसर का पुनर्विकास कराया है। करीब 95 लाख रुपये की लागत से मंदिर के आसपास एक खूबसूरत पार्क बनाया गया है, जो मेट्रो सिटी की तर्ज पर है।

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तालाब का विकास अमृत सरोवर योजना की तरह किया गया है। पार्क में बैठने की व्यवस्था, हाईमास्क लाइट्स और पौधरोपण ने इस स्थान को पर्यटकों और भक्तों के लिए और आकर्षक बना दिया है।

यह पुनर्विकास बिना सरकारी सहायता के, स्थानीय नेताओं और ग्रामवासियों के सहयोग से हुआ है। ब्लॉक प्रमुख दिलीप सिंह का कहना है कि यह प्रयास धर्म और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए किया गया।

  • अनूप जलोटा फाउंडेशन ने भी मंदिर को गोद लिया है, जिससे इसके रखरखाव और प्रचार-प्रसार में मदद मिली है।

सारनाथ महादेव मंदिर: कहां और कैसे पहुंचें?

मिर्जापुर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर और वाराणसी से मात्र 20-25 किलोमीटर दूर कछवां ब्लॉक के लरवक ग्रामसभा में यह मंदिर स्थित है।

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यह स्थान वाराणसी-इलाहाबाद राजमार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। कछवां से राजातालाब मार्ग पर 2.5-5 किलोमीटर की दूरी तय कर लरवक गांव पहुंचा जाता है।

मंदिर एक बड़े तालाब के किनारे है, जहां हाल ही में एक सुंदर पार्क और अमृत सरोवर की तर्ज पर तालाब का विकास किया गया है, जो इसकी सुंदरता को और निखारता है।

यात्रा के साधन:

  • ट्रेन: मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस लेकर 45-50 मिनट में मंदिर पहुंचा जा सकता है।
  • बस: मिर्जापुर या वाराणसी से लोकल बसें लरवक तक जाती हैं।
  • कार: जीपीएस पर "सारनाथ महादेव मंदिर, लरवक, मिर्जापुर" सर्च करें; रास्ता सुगम और अच्छी तरह चिह्नित है।
  • निकटतम हवाई अड्डा: वाराणसी का लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा, जो लगभग 40 किलोमीटर दूर है।

सावन के महीने में यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें हजारों भक्त शिवलिंग के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर मिर्जापुर पर्यटन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे देखने के लिए साल भर पर्यटक आते हैं।

यात्रा टिप्स: मिर्जापुर यात्रा को बनाएं यादगार

  1. सही समय चुनें: सावन माह (जुलाई-अगस्त) में मंदिर की रौनक देखते बनती है। मेले का आनंद लेने के लिए इस समय यात्रा करें। अन्य समय में भी शांत वातावरण में दर्शन के लिए जा सकते हैं।
  2. कपड़े और सामान: मंदिर में परंपरागत कपड़े पहनें। जल चढ़ाने के लिए गंगाजल और बेलपत्र साथ ले जाएं।
  3. आसपास के दर्शनीय स्थल: मिर्जापुर में विंध्यवासिनी मंदिर, चुनार किला और कांतित शारदा मंदिर भी देख सकते हैं।
  4. रहने की व्यवस्था: मिर्जापुर या वाराणसी में होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। लरवक में सीमित सुविधाएं हैं, इसलिए दिन की यात्रा बेहतर है।
  5. सावधानी: सावन में भीड़ अधिक होती है, इसलिए जेबकतरों से सावधान रहें और सामान का ध्यान रखें।

प्राचीन सारनाथ महादेव मंदिर की झलकियाँ

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निष्कर्ष: एक अविस्मरणीय यात्रा का आह्वान

सारनाथ महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास और रहस्य का खजाना है। इसकी प्राचीन दीवारें, अनपढ़े शिलालेख, औरंगजेब के हमले की कहानी और गंगा के चमत्कार इसे अनोखा बनाते हैं।

पुनर्विकास के बाद यह स्थान अब और भी आकर्षक हो गया है। अगर आप मिर्जापुर की यात्रा पर हैं, तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करें।

यह न केवल आपकी आस्था को मजबूत करेगा, बल्कि आपको भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से भी जोड़ेगा।

प्राचीन सारनाथ महादेव मंदिर FAQ

प्राचीन सारनाथ महादेव मंदिर: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सारनाथ महादेव मंदिर कहां स्थित है?
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के कछवां ब्लॉक में लरवक ग्रामसभा में स्थित है, जो मिर्जापुर जिला मुख्यालय से 45 किमी और वाराणसी से 20-25 किमी दूर है।
सारनाथ महादेव मंदिर कितना पुराना है?
मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है, हालांकि कुछ किंवदंतियां इसे 3000 साल पुराना बताती हैं।
मंदिर की दीवारों पर लिखे शब्द क्या हैं?
मंदिर की दीवारों पर देवनागरी लिपि में शब्द उकेरे गए हैं, जो आज तक कोई नहीं पढ़ सका। ये शिलालेख औरंगजेब के हमले से संबंधित हो सकते हैं।
क्या मंदिर से चुनार किले तक सुरंग है?
स्थानीय किंवदंतियों में मंदिर से चुनार किले तक सुरंग होने की बात कही जाती है, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
औरंगजेब ने मंदिर को कैसे नुकसान पहुंचाया?
1669 में औरंगजेब ने मंदिर पर हमला किया, नंदी की मूर्ति का सिर काटा और अन्य विग्रहों को क्षति पहुंचाई।
सावन माह में मंदिर में क्या खास होता है?
सावन में मंदिर में मेले का आयोजन होता है, जहां दूर-दूर से भक्त दर्शन और जल चढ़ाने आते हैं।
मंदिर का पुनर्विकास किसने कराया?
लरवक के ब्लॉक प्रमुख दिलीप सिंह और ग्राम प्रधानों ने 95 लाख रुपये की लागत से मंदिर परिसर का पुनर्विकास कराया।
मंदिर को किसने गोद लिया है?
मंदिर को अनूप जलोटा फाउंडेशन ने गोद लिया है, जो इसके रखरखाव में मदद करता है।
मंदिर की स्थापत्य शैली क्या है?
मंदिर नागर शैली में बना है, जो 10वीं-12वीं शताब्दी की वास्तुकला को दर्शाता है।
1978 की गंगा बाढ़ की क्या कहानी है?
1978 में गंगा रौद्र रूप में मंदिर में आई, जिसे भक्त शिव को जल चढ़ाने का चमत्कार मानते हैं।
मंदिर में दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय क्या है?
सावन माह (जुलाई-अगस्त) में मेले का आनंद ले सकते हैं, अन्यथा साल भर शांत दर्शन के लिए जा सकते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
मिर्जापुर या वाराणसी से बस, टैक्सी या कार से पहुंचा जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी में है।
क्या मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है?
हां, मंदिर को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
मंदिर के आसपास क्या सुविधाएं हैं?
मंदिर के पास एक पार्क, तालाब, बैठने की व्यवस्था और हाईमास्क लाइट्स हैं। रहने के लिए मिर्जापुर या वाराणसी में होटल उपलब्ध हैं।
क्या मंदिर में कोई चमत्कारिक मान्यता है?
भक्तों का मानना है कि यहां दर्शन से हर मनोकामना पूरी होती है।

Disclaimer:

इस आर्टिकल में दी गई जानकारी स्थानीय मान्यताओं, पुरातत्व विभाग के दस्तावेजों, और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। मंदिर के इतिहास और रहस्यों की प्रामाणिकता की पुष्टि के लिए स्वतंत्र रूप से शोध करें।

यह ब्लॉग केवल सूचना और पर्यटन प्रचार के उद्देश्य से है। किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं है।

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