Type Here to Get Search Results !

प्राचीन दुर्गा खोह, चुनार, मिर्जापुर: एक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक यात्रा

प्राचीन दुर्गा खोह, चुनार, मिर्जापुर: एक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक यात्रा

प्राचीन दुर्गा खोह का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, ऋषि अगस्त्य ने अपनी दक्षिण भारत यात्रा की शुरुआत इसी स्थान से की थी। 

विन्ध्य पर्वत श्रृंखला में स्थित चुनार को दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है, जहां विन्ध्याचल आज भी ऋषि अगस्त्य को साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में लेटा हुआ है। 

यह स्थान पौराणिक कथाओं में गहराई से जुड़ा है, और कहा जाता है कि यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती के अंग गिरे थे।

काशी खंड में एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, रुरु दैत्य के पुत्र दुर्ग ने कठोर तप से ब्रह्मा को प्रसन्न किया और अजय होने का वरदान प्राप्त किया। 

लेकिन उसने ऋषि-मुनियों और देवताओं को कष्ट देना शुरू कर दिया। देवताओं ने शिव से रक्षा की प्रार्थना की, और शिव ने देवी पार्वती से दुर्ग का वध करने का अनुरोध किया। 

देवी पार्वती ने अपनी शक्ति से कालरात्रि रूप धारण किया और सुंदर स्त्री के रूप में दैत्यों के पास भेजा। जब दैत्यों ने कालरात्रि को पकड़ने की कोशिश की, वे उनके तेज से भस्म हो गए। इसके बाद दुर्ग अपनी विशाल सेना के साथ चुनार के विन्ध्य पर्वत पर देवी से युद्ध करने आया।

  • इस युद्ध में देवी पार्वती ने सहज भुजा धारण कर दुर्ग और उसकी सेना का संहार किया।

 देवताओं ने उनकी स्तुति की, और इस विजय के कारण उन्हें "दुर्गा" नाम से अभिहित किया गया। यह स्थान, जहां देवी प्रकट हुईं, आज दुर्गा खोह के नाम से जाना जाता है।

Durga Khoh Chunar Mirzapur

बाद में, राजा सूरथ ने इस स्थान पर देवी की प्रतिमा को पहाड़ी चोटी पर स्थापित कर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।

Durga Kund  Mirzapur Chunar

स्वर्गीय भानु प्रताप तिवारी की पुस्तक चुनार का इतिहास (1880) में इस कथा का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि दुर्ग के वध के बाद बहते रक्त से एक कुंड का निर्माण हुआ, जिसे आज भी देखा जा सकता है।

Durga Khoh  Mirzapur Chunar 2

प्राचीन दुर्गा खोह प्राकृतिक सौंदर्य और भौगोलिक स्थिति

दुर्गा खोह का प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक अनुपम पर्यटन स्थल बनाता है। चुनार जंक्शन से दक्षिण दिशा में लगभग 1 किलोमीटर दूर, सक्तेशगढ़ मार्ग पर पहाड़ियों के बीच बसा यह मंदिर चारों ओर सघन वनराजी और झाड़ियों से घिरा हुआ है। 

Durga Kund talab  Mirzapur Chunar

वर्षा ऋतु में यहां एक छोटा जलप्रपात बनता है, जो कुंड में गिरकर गंगा नदी में मिल जाता है। इस जलप्रपात की मधुर ध्वनि और कुंड के शांत जल का दृश्य सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

इन्हें भी पढ़े :: मिर्जापुर का सक्तेशगढ़ आश्रम: स्वामी अड़गड़ानंद जी का आध्यात्मिक स्वर्ग

कुंड के ऊपर सुंदर दालान और कमरे बनवाए गए हैं, जहां भक्त भोजन बनाते हैं, विश्राम करते हैं, और आवश्यकता पड़ने पर ठहरते हैं। 

  • बाबू हनुमान प्रसाद और अन्य दानदाताओं ने इस विकास में योगदान दिया है। 

वर्षाकाल में कुंड में स्नान करने और ऊंचे चबूतरे से छलांग लगाने की परंपरा स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है। आसपास का शुद्ध वातावरण और पहाड़ों से बहता पानी भक्तों और पर्यटकों को शांति प्रदान करता है।

दुर्गा खोह मंदिर त्रिकोण यात्रा और धार्मिक मान्यताएं

दुर्गा खोह मंदिर त्रिकोण यात्रा के लिए प्रसिद्ध है, जो धार्मिक मान्यताओं में गहराई से जुड़ा है। इस यात्रा का पहला चरण दुर्गा माता मंदिर, दूसरा चरण काली माता मंदिर, और तीसरा चरण भैरव जी का मंदिर है, जो काली माता मंदिर के सामने स्थित है।

Chunar Durga Khoh

यह त्रिकोण यात्रा विंध्याचल माता के दर्शन की तरह पूर्ण मानी जाती है। जो भक्त विंध्याचल में त्रिकोण यात्रा पूरी नहीं कर पाते, वे यहां दर्शन करके समान फल प्राप्त कर सकते हैं।

Durga Khoh shivmandir  Chunar

मंदिर के अन्दर एक अति प्राचीन शिवलिंग भी हैं माँ दुर्गा के दर्श के पश्चात् भक्त बाबा भोले का दर्शन करते हैं इसी शिवलिंग के समीप नंदी जी भी विराजमान हैं ।

Durga Kund ganesh ji kartike ji  Mirzapur Chunar

मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं, जैसे महादेव जी, हनुमान जी, गणेश जी, और कार्तिकेय जी।

Durga Khoh bhaiv ji  Mirzapur Chunar

भक्तों के लिए भैरव जी के दर्शन को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि माता के दर्शन के बाद भैरव जी की पूजा करना शुभ माना जाता है।

Durga Kund  kuan Mirzapur Chunar

काली माता मंदिर के पास एक कूप है, जहां से मीठा और सुपाच्य जल निकलता है, जिसे उदर रोगों में लाभकारी माना जाता है।

दुर्गा खोह मंदिर त्योहार और मेला

दुर्गा खोह मंदिर वर्ष भर भक्तों से भरा रहता है, लेकिन विशेष त्योहारों के दौरान यहां की रौनक बढ़ जाती है। वासन्तिक नवरात्र और शारदीय नवरात्र में हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

Durga Kund  Mirzapur Chunar 6

चूंकि राजा सूरथ ने चैत्र शुक्ल नवरात्र में मंदिर का निर्माण करवाया था, वासन्तिक नवरात्र में दर्शन का विशेष महत्व है। इसके अलावा, भगवान श्री राम के वनगमन के बाद यहां पूजा करने की मान्यता के कारण शारदीय नवरात्र भी लोकप्रिय है।

इन्हें भी पढ़े :: मिर्ज़ापुर का सक्तेशगढ़ किला: समय की गहराइयों में छुपा एक रहस्यमयी गढ़

सावन माह में यह स्थान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सावन के हर मंगलवार को यहां मेला लगता है, जिसमें सबसे अधिक भीड़ चौथे और कभी-कभी पांचवें मंगलवार को होती है।

इस दौरान भक्त दाल-भात, लिट्टी-चोखा बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। नवरात्र और सावन में मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।

दुर्गा खोह मंदिर सिद्ध साधना और तांत्रिक महत्व

दुर्गा खोह और काली खोह तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। यह स्थान प्राकृतिक एकांत और शक्तिशाली ऊर्जा के कारण साधकों के लिए उपयुक्त माना जाता है।

Durga Khoh  Mirzapur Chunar

प्रवेश प्रांगण में सिद्ध साधक कमल गिरी की समाधि है, जिन्होंने जीवित समाधि ली थी। एक कथा के अनुसार, वे बाद में जगन्नाथ जी के मंदिर में दर्शन के लिए गए, जहां एक भक्त ने उन्हें पहचानकर चरणों में गिर पड़ा। 

  • काली खोह में एक पानी का सोता है, जो साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।

पहले, जब आवागमन के साधन सीमित थे और हिंसक जंगली जानवरों की संख्या अधिक थी, केवल सिद्ध कोटि के साधक ही यहां रह पाते थे। आज भी नियमित रूप से साधक अपनी योग और तांत्रिक साधना के लिए यहां आते हैं।

Chunar ka Durga khoh

दुर्गा खोह मंदिर यात्रा और सुविधाएं

दुर्गा खोह मंदिर तक पहुंचना आसान है। चुनार जंक्शन से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है।

Chunar mirzapur

मंदिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है, और नवरात्र में सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक विशेष समय होता है। मंगलवार को सुबह 4:30 बजे और अन्य दिनों सुबह 5:30 बजे आरती होती है।

Chunar Durga Khoh

मंदिर परिसर में कुंड में स्नान की सुविधा है, और आसपास के चबूतरे पर विश्राम के लिए कमरे उपलब्ध हैं। भक्तों के लिए प्रसाद और पूजा सामग्री की दुकानें भी हैं। 

Durga Kund  Mirzapur Chunar 7

सावन और नवरात्र में यहां भंडारा और कन्या भोज जैसे आयोजन होते हैं।

दुर्गा खोह मंदिर पर्यटन और आसपास के आकर्षण

दुर्गा खोह के आसपास कई पर्यटन स्थल हैं। सिद्धनाथ दरी, जो 19 किलोमीटर दूर है, अपने जलप्रपात के लिए प्रसिद्ध है। बाबा अड़गड़ानंद जी का आश्रम, जो 16 किलोमीटर दूर है, भी भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

इन्हें भी पढ़े :: दक्षिणेश्वरी काली मां का मंदिर, त्रिमोहानी मिर्जापुर: एक प्राचीन और आध्यात्मिक स्थल की पूरी जानकारी

एक रोचक तथ्य यह है कि लेखक देवकीनंदन खत्री ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक चंद्रकांता को एक किलोमीटर दूर पीपल के नीचे लिखा, जहां उनकी मुलाकात गुरु दत्तात्रेय से हुई थी।

Durga khoh Chunar ka

दुर्गा खोह मंदिर मनोकामना और परंपराएं

भक्त यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मन्नत पूरी होने पर नारियल, चुनरी चढ़ाते हैं, जो मंदिर परिसर में बंधे देखे जा सकते हैं।

Chunar Durga Khoh

मुंडन, नामकरण, विवाह, और अन्य आयोजनों के लिए भी यह स्थान लोकप्रिय है। श्रद्धालु माता रानी के चरणों में शीश नवाकर प्रसाद चढ़ाते हैं और भंडारा आयोजित करते हैं---।

प्राचीन दुर्गा कुण्ड, चुनार: 15 FAQ

प्राचीन दुर्गा कुण्ड, चुनार: 15 सामान्य प्रश्न और उत्तर

प्राचीन दुर्गा कुण्ड, चुनार, मिर्जापुर में एक शक्तिपीठ है, जहां देवी सती के अंग गिरे थे और यह तांत्रिक साधना का केंद्र है।
यह मंदिर चुनार जंक्शन से 1 किलोमीटर दूर, सक्तेशगढ़ मार्ग पर विन्ध्य पर्वत में स्थित है।
इसकी स्थापना का इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा है, और राजा सूरथ ने मंदिर का निर्माण करवाया था।
यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती के अंग गिरने की मान्यता है।
चुनार जंक्शन से 1 किमी की दूरी पर है, सड़क मार्ग से ऑटो या पैदल पहुंचा जा सकता है।
त्रिकोण यात्रा में दुर्गा माता, काली माता, और भैरव जी के मंदिर के दर्शन शामिल हैं, जो पूर्ण मानी जाती है।
वर्षाकाल में कुंड में स्नान की परंपरा है, जो आध्यात्मिक शुद्धि के लिए माना जाता है।
वासन्तिक और शारदीय नवरात्र, साथ ही सावन माह में मेला लगता है।
सावन के हर मंगलवार, विशेषकर चौथे और पांचवें मंगल को मेला लगता है।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है, नवरात्र में सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक।
काली खोह में माँ काली की प्रतिमा और एक मीठे जल का सोता है, जो साधना के लिए प्रसिद्ध है।
प्राकृतिक एकांत और शक्तिशाली ऊर्जा के कारण यह तांत्रिक साधना के लिए उपयुक्त है।
सिद्धनाथ दरी (19 किमी) और बाबा अड़गड़ानंद जी का आश्रम (16 किमी) प्रमुख हैं।
भक्त नारियल, चुनरी चढ़ाते हैं, कन्या भोज और भंडारा आयोजित करते हैं।
सावन माह और नवरात्र, खासकर वर्षा के दौरान यहाँ का सौंदर्य देखने लायक है।

निष्कर्ष: प्राचीन दुर्गा खोह, चुनार की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक यात्रा

प्राचीन दुर्गा कुण्ड, चुनार, मिर्जापुर, एक ऐसा पवित्र स्थल है जो आस्था, इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।

Chunar ki Durga Khoh

51 शक्तिपीठों में से एक के रूप में मान्य यह मंदिर, ऋषि अगस्त्य, देवी पार्वती और राजा सूरथ से जुड़ी पौराणिक कथाओं के साथ गहराई से जुड़ा है।

विन्ध्य पर्वत की गोद में बसा यह स्थान, अपने जलप्रपात, कुंड, और त्रिकोण यात्रा के लिए भक्तों और सैलानियों को आकर्षित करता है।

इन्हें भी पढ़े :: बूढ़ेनाथ मंदिर मिर्जापुर: इतिहास, मान्यताएं, वास्तुकला और दर्शन गाइड | मिर्जापुर यात्रा

सावन और नवरात्र के मेले, तांत्रिक साधना का महत्व, और मनोकामना पूर्ति की मान्यताएं इसे विशेष बनाती हैं। चुनार जंक्शन से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर, आसपास के आकर्षण जैसे सिद्धनाथ दरी और बाबा अड़गड़ानंद जी का आश्रम के साथ एक संपूर्ण यात्रा अनुभव प्रदान करता है।

Durga Khoh  Chunar Mirzapur 1
Durga Kund  Mirzapur Chunar 1
Durga Kund   Mirzapur Chunar 7
Mirzapur Chunar ka Durga Kund
Durga Kund   Mirzapur Chunar 8
Chunar Durga Kund 1
Chunar ka Durga Kund
Chunar maa Durga Khoh
Chunar Durga Khoh
Chunar prachin Durga Kund