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प्राचीन नाग कुंड कंतित, विंध्याचल: हजारों साल पुरानी पाताल लोक की रहस्यमयी किंवदंतियां

नाग कुंड विंध्याचल: हजारों साल पुराना ऐतिहासिक स्थल और पाताल लोक की रहस्यमयी किंवदंतियां

विंध्याचल, मिर्जापुर जिले का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र, मां विंध्यवासिनी देवी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन मंदिर से कुछ ही दूरी पर कंतित क्षेत्र में स्थित नाग कुंड एक ऐसा स्थल है, जो ऐतिहासिक, धार्मिक और रहस्यमयी महत्व से भरा हुआ है। 

लगभग 2,200-2,500 वर्ष पुराना यह कुंड नाग वंश की राजधानी कांतिपुर (वर्तमान कंतित) का हिस्सा था। इसे तिलिस्मी कुंड या बावन घाट के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें 52 सीढ़ियां और घाट हैं।

नाग पंचमी, जो सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है, इस कुंड के लिए विशेष दिन है। इस दिन हजारों भक्त यहां स्नान करने और दूध-लावा चढ़ाने आते हैं। 

धार्मिक ग्रंथों जैसे वामन पुराण और बावन पुराण में इस कुंड का उल्लेख है, जहां इसे सर्प दोष से मुक्ति दिलाने वाला बताया गया है। कुंड के चारों ओर पत्थर की सीढियाँ इसकी रहस्यमयी आभा को और बढ़ाती हैं।

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इस आर्टिकल में हम नाग कुंड की किंवदंतियों, रहस्य और धार्मिक मान्यताओं को विस्तार से जानेंगे और इसके इतिहास, वास्तुशिल्प और वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालेंगे।

नाग कुंड का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नाग कुंड का इतिहास प्राचीन नाग वंश से गहराई से जुड़ा है। भारत में नाग वंश की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। नागवंशी राजा सर्प पूजक थे और खुद को नागों के वंशज मानते थे।

कुछ विद्वान मानते हैं कि नाग जातियां हिमालय के पार से आई थीं, और तिब्बती भाषा को 'नागभाषा' कहा जाता था। विंध्याचल क्षेत्र, जिसे प्राचीन काल में कांतिपुर या पंपापुर के नाम से जाना जाता था, नागवंशी राजाओं की राजधानी थी।

लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व, नागवंशी राजा दानवराज ने इस कुंड का निर्माण करवाया था। पुराणों के अनुसार, राजा की 52 रानियां थीं, और उनके स्नान के लिए इस कुंड को बनाया गया। 

  • यह कुंड न केवल जलाशय था, बल्कि नाग वंश की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था।

नागवंशी राजा मां विंध्यवासिनी को अपनी कुल देवी मानते थे, और मंदिर में पूजा से पहले इस कुंड में स्नान करते थे।

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इतिहासकारों के अनुसार, नाग वंश का प्रभाव विंध्य क्षेत्र में 10वीं शताब्दी ई.पू. तक था, और इसका उल्लेख परमार कालीन ग्रंथों में भी मिलता है।

नाग कुंड की किंवदंतियां: रहस्य और चमत्कार की कहानियां

नाग कुंड से जुड़ी पांच प्रमुख किंवदंतियां इसे भारत के सबसे रहस्यमयी धार्मिक स्थलों में से एक बनाती हैं। ये किंवदंतियां न केवल इसकी पौराणिकता को दर्शाती हैं, बल्कि भक्तों के बीच इसकी आस्था को भी मजबूत करती हैं। आइए इन किंवदंतियों को विस्तार से जानें:

1. सर्प दोष मुक्ति: आध्यात्मिक शांति का स्रोत

नाग कुंड की सबसे प्रसिद्ध किंवदंती है कि इसमें स्नान करने से सर्प दोष और कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है। बावन पुराण में इसका उल्लेख है कि नाग पंचमी के दिन इस कुंड में स्नान करने से सभी प्रकार के सर्प-संबंधी दोष दूर हो जाते हैं।

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सर्प दोष वह ज्योतिषीय स्थिति है, जिसमें कुंडली में राहु और केतु ग्रहों का विशेष योग बनता है, जिससे जीवन में बाधाएं आती हैं।

मान्यता है कि नाग कुंड में स्नान और नाग देवताओं को दूध चढ़ाने से यह दोष समाप्त होता है, और व्यक्ति को सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। 

स्थानीय लोग बताते हैं कि प्राचीन काल में नागवंशी राजा और उनके प्रजा इस कुंड में स्नान कर सर्प देवताओं से आशीर्वाद मांगते थे। 

आज भी नाग पंचमी पर हजारों भक्त यहां स्नान करने आते हैं, और उनकी मान्यता है कि इससे उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यह किंवदंती नाग कुंड को भारत के अन्य नाग मंदिरों जैसे उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर या प्रयागराज के वासुकी मंदिर के समकक्ष बनाती है।

2. 52 रानियों का स्नान: राजसी वैभव की कहानी

वामन पुराण के अनुसार, नागवंशी राजा दानवराज की 52 रानियां थीं, और उनके स्नान के लिए इस कुंड का निर्माण किया गया था। इसीलिए कुंड में 52 सीढ़ियां और घाट बनाए गए, जिसके कारण इसे बावन घाट भी कहा जाता है। यह किंवदंती कुंड के निर्माण के उद्देश्य को दर्शाती है और इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करती है।

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कहा जाता है कि राजा की रानियां इस कुंड में स्नान करती थीं, और उनके साथ उनके दास-दासियां भी यहां आते थे। स्नान के बाद रानियां मां विंध्यवासिनी के मंदिर में पूजा करने जाती थीं।

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यह परंपरा नाग वंश की धार्मिकता और उनके कुल देवी के प्रति श्रद्धा को दर्शाती है। आज भी इस कुंड में स्नान करने की परंपरा बरकरार है, और भक्त इसे पवित्र जलाशय मानते हैं। इस किंवदंती ने कुंड को एक राजसी वैभव और धार्मिकता का प्रतीक बनाया है।

3. चमत्कारी बर्तन: याचना पर मिलने वाली वस्तुएं

नाग कुंड की सबसे रोचक किंवदंतियों में से एक है चमत्कारी बर्तनों की कहानी। स्थानीय दंतकथाओं और वामन पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में जब कोई गरीब व्यक्ति या यात्री कुंड के पास खड़ा होकर प्रार्थना करता था, तो कुंड के जल में तैरते हुए बर्तनों में उनकी जरूरत की वस्तुएं प्रकट हो जाती थीं। इन बर्तनों को उपयोग करने के बाद उन्हें वापस कुंड में डाल दिया जाता था, और वे गायब हो जाते थे।

यह किंवदंती कुंड की तिलिस्मी शक्ति को दर्शाती है। कहा जाता है कि यह चमत्कार नाग देवताओं की कृपा से होता था, जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते थे।

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हालांकि, समय के साथ यह चमत्कार समाप्त हो गया, लेकिन इस कथा ने कुंड को एक जादुई और रहस्यमयी स्थल के रूप में स्थापित किया। आज भी स्थानीय लोग इस कथा को साझा करते हैं, और यह कुंड की महिमा को बढ़ाती है।

4. पाताल लोक का रास्ता: नागों की नगरी का द्वार

नाग कुंड की सबसे रहस्यमयी किंवदंती है कि यह पाताल लोक का रास्ता है। शास्त्रों में वर्णित है कि पाताल लोक नागवंशियों की नगरी है, जहां शक्तिशाली नाग जैसे वासुकी, तक्षक और शेषनाग निवास करते हैं। 

प्राचीन नगरी पंपापुर (वर्तमान विंध्याचल) में यह कुंड पाताल लोक का द्वार माना जाता है। मान्यता है कि नागवंशी राजा और उनके सर्प देवता इस रास्ते से पाताल लोक आते-जाते थे।

कुंड के चारों ओर बनी पत्थर की नाग मूर्तियां इस किंवदंती को और विश्वसनीय बनाती हैं। कई युगों से यह कुंड पांच छोटे कुओं के साथ विद्यमान है, और इन्हीं कुओं में से एक पाताल लोक का मार्ग माना जाता है।

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यह किंवदंती कुंड को भारत के उन गिने-चुने स्थलों में शामिल करती है, जो पौराणिक और रहस्यमयी दुनिया से जुड़े हैं। भक्तों का मानना है कि नाग पंचमी पर यहां पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और पाताल लोक से आशीर्वाद देते हैं।

5. रात में चमकती मूर्तियां: अलौकिक शक्ति का प्रतीक

नाग कुंड की एक और आकर्षक किंवदंती है कि कुंड के चारों ओर बनी पत्थर की नाग मूर्तियां रात में चमकती हैं

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स्थानीय लोग और कुछ भक्तों का कहना है कि नाग पंचमी की रात या विशेष अमावस्याओं पर ये मूर्तियां रहस्यमयी रूप से चमक उठती हैं, जैसे कि उनमें कोई अलौकिक शक्ति हो। यह चमक नाग देवताओं की उपस्थिति का संकेत मानी जाती है।

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कहा जाता है कि प्राचीन काल में ये मूर्तियां विशेष प्रकार के पत्थरों से बनाई गई थीं, जो रात में प्रकाश को परावर्तित करते थे।

 कुछ लोग इसे प्राकृतिक घटना मानते हैं, जबकि अन्य इसे नाग देवताओं का चमत्कार मानते हैं। यह किंवदंती कुंड की आध्यात्मिक शक्ति को और बढ़ाती है, और भक्तों को रात में पूजा करने के लिए प्रेरित करती है।

नाग कुंड का धार्मिक महत्व: नाग पंचमी और सर्प पूजा

नाग कुंड का सबसे बड़ा धार्मिक महत्व नाग पंचमी से जुड़ा है। सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाए जाने वाले इस पर्व पर भक्त नाग देवताओं जैसे वासुकी, तक्षक और शेषनाग की पूजा करते हैं। 

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नाग कुंड में स्नान और दूध चढ़ाने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है, और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मां विंध्यवासिनी को नागवंशी राजाओं की कुल देवी माना जाता था, और मंदिर में पूजा से पहले कुंड में स्नान करने की परंपरा थी।

श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, "सर्पों में मैं वासुकी हूं," जो नाग पूजा के महत्व को दर्शाता है। अग्नि पुराण, स्कंद पुराण, और महाभारत में भी सर्प पूजा का उल्लेख है।

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नाग कुंड पर नाग पंचमी के दिन हजारों भक्त इकट्ठा होते हैं, और कुंड की पवित्रता उनकी आस्था को मजबूत करती है। भारत के अन्य नाग मंदिरों जैसे सेम-मुखेम नागराजा मंदिर (उत्तराखंड), मन्नारशाला नाग मंदिर (केरल), और नागचंद्रेश्वर मंदिर (उज्जैन) में भी ऐसी परंपराएं हैं, लेकिन नाग कुंड की पाताल लोक किंवदंती इसे अनूठा बनाती है।

नाग कुंड का वास्तुशिल्प: प्राचीन इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना

नाग कुंड की वास्तुकला प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग का एक शानदार उदाहरण है। कुंड चारों ओर से 52 सीढ़ियों से घिरा हुआ है, जिसके कारण इसे बावन घाट कहा जाता है। 

कुंड की तलहटी में पांच छोटे कुएं हैं, जो पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं। चारों ओर बनी पत्थर की नाग मूर्तियां कुंड की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाती हैं।

सीढ़ियों का डिजाइन न केवल उपयोगी है, बल्कि यह राजा की 52 रानियों से जुड़ा है। कुंड का निर्माण इस तरह किया गया है कि यह गर्मियों में भी पानी से भरा रहता है। 

यह प्राचीन जल प्रबंधन और स्थापत्य कला का नमूना है, जो विंध्य पर्वत और गंगा संगम के निकट इसकी स्थिति को और महत्वपूर्ण बनाता है।

वर्तमान स्थिति: जीर्णोद्धार और संरक्षण की चुनौतियां

दुर्भाग्यवश, समय के साथ नाग कुंड की उपेक्षा हुई, और कूड़े-करकट के कारण इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया था। लेकिन हाल के वर्षों में मिर्जापुर प्रशासन और स्थानीय लोगों ने इसके जीर्णोद्धार का प्रयास किया।

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दीवारों की पेंटिंग, झाड़ियों की सफाई और अन्य सुधारों के बाद कुंड फिर से भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है। फिर भी, उचित देख-रेख की कमी के कारण इस धरोहर को संरक्षित करने की जरूरत है।

मिर्जापुर रेलवे स्टेशन

मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से मात्र 6 किमी दूर, लाल भैरव मंदिर के सामने उत्तर दिशा में स्थित यह कुंड मिर्जापुर की सांस्कृतिक धरोहर है। धरोहर प्रेमियों का कहना है कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए, ताकि इसकी महिमा और इतिहास को विश्व भर में फैलाया जा सके।

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कैसे पहुंचें नाग कुंड: यात्रा गाइड

नाग कुंड तक पहुंचना आसान है। यह मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से 6 किमी और वाराणसी से लगभग 70 किमी दूर है। आप ट्रेन, बस, टैक्सी या ऑटो से विंध्याचल पहुंच सकते हैं।

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कुंड विंध्याचल मंदिर से पहले कंतित क्षेत्र में लाल भैरव मंदिर से कुछ ही दुरी पर स्थित है। नाग पंचमी के दौरान यहां भीड़ रहती है, इसलिए पहले से यात्रा की योजना बनाएं। आसपास मां विंध्यवासिनी मंदिर, गंगा घाट और अन्य धार्मिक स्थल भी घूम सकते हैं --------।

नाग कुंड विंध्याचल: 15 सामान्य प्रश्न और उत्तर

नाग कुंड विंध्याचल: 15 सामान्य प्रश्न और उत्तर

विंध्याचल का नाग कुंड क्या है?
नाग कुंड मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के विंध्याचल में कंतित क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। इसे तिलिस्मी कुंड या बावन घाट भी कहा जाता है। यह लगभग 2500 वर्ष पुराना है और नागवंशी राजाओं की राजधानी कांतिपुर का हिस्सा था।
नाग कुंड का धार्मिक महत्व क्या है?
नाग कुंड नाग पंचमी पर विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से सर्प दोष और कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है। यह मां विंध्यवासिनी के भक्तों के लिए पूजा से पहले स्नान का स्थान रहा है।
नाग कुंड से पाताल लोक का रास्ता क्यों माना जाता है?
शास्त्रों में कहा गया है कि नाग कुंड पाताल लोक का द्वार है, जहां नागवंशी राजा और सर्प देवता आते-जाते थे। यह किंवदंती इसे रहस्यमयी बनाती है, और कुंड के पांच कुओं में से एक को पाताल का मार्ग माना जाता है।
नाग कुंड में सर्प दोष मुक्ति कैसे मिलती है?
बावन पुराण के अनुसार, नाग पंचमी पर नाग कुंड में स्नान और दूध चढ़ाने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है। यह ज्योतिषीय दोषों को दूर करता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
52 रानियों का स्नान किंवदंती क्या है?
वामन पुराण के अनुसार, नागवंशी राजा दानवराज की 52 रानियों के स्नान के लिए इस कुंड का निर्माण हुआ। इसलिए इसमें 52 सीढ़ियां और घाट हैं, जिसके कारण इसे बावन घाट भी कहा जाता है।
नाग कुंड के चमत्कारी बर्तनों की कहानी क्या है?
प्राचीन काल में, जरूरतमंद लोग कुंड के पास प्रार्थना करते थे, और जल में तैरते बर्तनों में उनकी जरूरत की वस्तुएं प्रकट हो जाती थीं। उपयोग के बाद इन्हें वापस कुंड में डाल दिया जाता था।
रात में चमकती मूर्तियों की किंवदंती क्या है?
स्थानीय मान्यता है कि नाग कुंड की पत्थर की नाग मूर्तियां नाग पंचमी या अमावस्या की रात को चमकती हैं, जो नाग देवताओं की उपस्थिति का संकेत है।
नाग कुंड का निर्माण किसने करवाया था?
नाग कुंड का निर्माण लगभग 2200-2500 वर्ष पूर्व नागवंशी राजा दानवराज ने करवाया था, जो कांतिपुर (वर्तमान कंतित) की राजधानी में शासन करते थे।
नाग कुंड में कितनी सीढ़ियां हैं और क्यों?
नाग कुंड में 52 सीढ़ियां हैं, जो राजा दानवराज की 52 रानियों के स्नान के लिए बनाई गई थीं। इस कारण इसे बावन घाट भी कहा जाता है।
नाग कुंड में पानी का स्रोत क्या है?
कुंड की तलहटी में पांच छोटे कुएं हैं, जो पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं, जिससे कुंड हमेशा भरा रहता है।
नाग कुंड की वर्तमान स्थिति क्या है?
हाल ही में नाग कुंड का जीर्णोद्धार हुआ है, लेकिन उचित देख-रेख की कमी है। इसे मिर्जापुर की धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत है।
नाग कुंड कैसे पहुंचें?
नाग कुंड मिर्जापुर रेलवे स्टेशन से 6 किमी दूर, विंध्याचल मार्ग पर लाल भैरव मंदिर के सामने है। वाराणसी से 70 किमी की दूरी पर टैक्सी या ऑटो से पहुंचा जा सकता है।
नाग पंचमी पर नाग कुंड में क्या होता है?
नाग पंचमी पर भक्त नाग कुंड में स्नान करते हैं, दूध चढ़ाते हैं, और सर्प देवताओं की पूजा करते हैं। यह सर्प दोष मुक्ति और अक्षय पुण्य के लिए किया जाता है।
नाग कुंड और विंध्यवासिनी मंदिर का संबंध क्या है?
नागवंशी राजा मां विंध्यवासिनी को कुल देवी मानते थे और मंदिर में पूजा से पहले नाग कुंड में स्नान करते थे। यह परंपरा आज भी प्रचलित है।
नाग कुंड की तुलना अन्य नाग मंदिरों से कैसे की जा सकती है?
नाग कुंड की पाताल लोक किंवदंती इसे उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर या केरल के मन्नारशाला मंदिर से अलग बनाती है, हालांकि सभी में सर्प पूजा का महत्व है।

निष्कर्ष: नाग कुंड - एक धरोहर जो जीवित रहनी चाहिए

विंध्याचल का नाग कुंड न केवल एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, बल्कि पाताल लोक की किंवदंतियों और चमत्कारों का प्रतीक है।

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सर्प दोष मुक्ति, 52 रानियों का स्नान, चमत्कारी बर्तन, पाताल लोक का रास्ता, और रात में चमकती मूर्तियां—ये किंवदंतियां इस कुंड को भारत के सबसे रहस्यमयी स्थलों में से एक बनाती हैं। 

नाग पंचमी 2025 पर इस कुंड में स्नान और पूजा करने की योजना बनाएं, और इस धरोहर को संरक्षित करने में योगदान दें। 

  • मिर्जापुर की इस अनमोल धरोहर को बचाना और मिर्ज़ापुर से जुड़ी धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को लोगों तक पहुचाना हमारा कर्तव्य है।