श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर (बेटी जी का मंदिर), मिर्ज़ापुर: एक आध्यात्मिक यात्रा
मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर, न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और गंगा के तटों के लिए जाना जाता है, बल्कि यहाँ के ऐतिहासिक मंदिरों और आध्यात्मिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है।
इनमें से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर, जिसे स्थानीय लोग बेटी जी का मंदिर के नाम से जानते हैं। यह मंदिर मिर्ज़ापुर के टेढ़ी नीम, सत्ती रोड, बुंदेलखंडी, बूढ़ेनाथ के पास स्थित है और यहाँ की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्ता इसे भक्तों और पर्यटकों के लिए विशेष बनाती है।
यह लेख आपको इस मंदिर के इतिहास, आध्यात्मिक महत्व, वास्तुकला, और यहाँ होने वाले उत्सवों के बारे में विस्तार से बताएगा, ताकि आप इस पवित्र स्थल की यात्रा के लिए प्रेरित हो सकें।
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर (बेटी जी का मंदिर) का परिचय और स्थान
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर मिर्ज़ापुर के हृदय में, बूढ़ेनाथ मंदिर के निकट, टेढ़ी नीम, सत्ती रोड पर स्थित है। यह मंदिर भूतल पर नहीं, बल्कि प्रथम तल पर बना है, जिसके लिए भक्तों को सीढ़ियों से चढ़कर जाना पड़ता है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो शेरों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो इसकी भव्यता और पवित्रता को और बढ़ाती हैं। मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करने पर एक विशाल आंगन दिखाई देता है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से संबंधित मनमोहक पेंटिंग्स बनी हुई हैं।
इसके अलावा, आंगन के ऊपर बने बरामदे पर भी श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़े चित्र देखे जा सकते हैं, जो भक्तों के मन को भक्ति रस में डुबो देते हैं।
यह मंदिर न केवल अपनी वास्तुकला और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्ति भावना भी इसे एक अनूठा तीर्थ स्थल बनाती है।
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मंदिर का प्रबंधन बेटी जी का मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जो यहाँ होने वाले धार्मिक और सामाजिक कार्यों को संचालित करता है।
बेटी जी मंदिर का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है और यह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से जुड़ा हुआ है। किवदंती के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना का संबंध विट्ठल स्वामी के पुत्र गित्थर जी महाराज से है, जिन्होंने मथुरा में श्री गोवर्धन नाथ जी की प्रतिमा स्थापित की थी।
औरंगजेब के शासनकाल में जब मंदिरों को तोड़ा जाने लगा, तब इस प्रतिमा को मथुरा से उदयपुर ले जाया गया। वहाँ महाराणा राज सिंह ने एक हवेली का निर्माण कराकर वैष्णव रीति से पूजा-अर्चना शुरू की।
इस मंदिर से जुड़ी एक विशेष कथा बेटी जी की है, जिनके नाम पर यह मंदिर जाना जाता है। बेटी जी एक ऐसी भक्त थीं, जो अपनी कृष्ण भक्ति के लिए दूसरी मीरा के रूप में जानी जाने लगी थीं।
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उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि जब उनके परिवार ने मंदिर आने पर रोक लगा दी, तब उन्होंने अन्न-जल त्यागकर तप शुरू कर दिया। स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें यमुना तट पर अपनी प्रतीक्षा करने का संदेश दिया।
बेटी जी राजस्थान से मथुरा आईं और वहाँ यमुना की रेती में उन्हें श्री गोवर्धन नाथ जी की एक भव्य प्रतिमा प्राप्त हुई।
इस प्रतिमा को काशी ले जाने के उद्देश्य से नाव पर रखा गया, लेकिन मिर्ज़ापुर के दाऊघाट पर नाव रुक गई और कितनी भी कोशिशों के बावजूद आगे नहीं बढ़ी।
स्वप्न में भगवान ने बेटी जी को बताया कि उनके बड़े भाई दाऊ जी (बलराम) यहीं विराजमान हैं और वे भी यहीं रहना चाहते हैं।
- इसके बाद बेटी जी ने दाऊ जी के मंदिर में श्री गोवर्धन नाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की।
मिर्ज़ापुर के गोठ साहूकारों ने 1700 के आसपास जनसहयोग किया, जिससे बूढ़ेनाथ सत्ती रोड पर इस मंदिर के लिए हवेली का निर्माण करवाया।
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बेटी जी यहाँ भगवान की सेवा में लीन हो गईं और अंततः भगवान में ही समाहित हो गईं। तभी से यह मंदिर बेटी जी का मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आध्यात्मिक महत्व
यह मंदिर श्री कृष्ण भक्ति का एक प्रमुख केंद्र है। यहाँ की प्रतिमा और भक्ति परंपरा वैष्णव संप्रदाय से जुड़ी है। भक्तों का मानना है कि यहाँ दर्शन करने से मन की शांति प्राप्त होती है और भगवान श्री कृष्ण की कृपा बरसती है।
मंदिर में होने वाली पूजा-अर्चना और उत्सव भक्तों को भक्ति रस में डुबो देते हैं। खास तौर पर अन्नकूट महोत्सव यहाँ का प्रमुख उत्सव है, जिसमें भगवान को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं।
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मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहाँ की किवदंतियाँ भक्तों में गहरी आस्था पैदा करती हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार पुजारी रात में लड्डू का भोग लगाना भूल गए।
तब भगवान श्री कृष्ण अपने बाल रूप में बाजार गए और अपने हाथ का कड़ा देकर लड्डू खरीद लाए। सुबह जब भक्तों ने देखा कि भगवान के एक हाथ में कड़ा नहीं है, तो वे आश्चर्यचकित रह गए। हलवाई की बहू ने बताया कि रात में एक बालक यह कड़ा देकर लड्डू ले गया था।
- इस तरह की कथाएँ इस मंदिर की चमत्कारी शक्ति को दर्शाती हैं।
मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएँ
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हवेली शैली में बनी है। मंदिर का प्रवेश द्वार भव्य है, जहाँ दोनों ओर शेरों की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
ये मूर्तियाँ मंदिर की शोभा और गरिमा को बढ़ाती हैं। मंदिर प्रथम तल पर स्थित है, और यहाँ तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर का आंगन विशाल और खुला हुआ है, जहाँ श्री कृष्ण की लीलाओं को दर्शाने वाली पेंटिंग्स बनी हैं। ये चित्र इतने जीवंत और मनमोहक हैं कि भक्तों का ध्यान तुरंत आकर्षित होता है।
आंगन के ऊपर बने बरामदे पर भी श्री कृष्ण की लीलाओं से संबंधित चित्रकारी की गई है, जो मंदिर की सौंदर्यिक और आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ाती है। मंदिर के गर्भगृह में श्री गोवर्धन नाथ जी की प्रतिमा स्थापित है, जिसके दर्शन मात्र से भक्तों को आत्मिक शांति मिलती है।
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मंदिर परिसर में एक होम्योपैथिक दातव्य औषधालय भी संचालित होता है, जो बेटी जी का मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित है। यह औषधालय स्वर्गीय रामगोपाल जी उर्फ बब्लू जी लोहिया की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा देवी की स्मृति में बनवाया गया था। इसका निर्माण कार्य संवत् 2084 में पूरा हुआ था। औषधालय प्रातः से शाम 6 बजे तक खुला रहता है, और रविवार को अवकाश रहता है। यह औषधालय मंदिर की सामाजिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मंदिर की दर्शन और पूजा समय-सारणी
मंदिर में दर्शन और पूजा का समय मौसम के अनुसार बदलता है। यहाँ शरद ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के लिए अलग-अलग समय-सारणी निर्धारित है:
शरद ऋतु (अन्नकूट के दूसरे दिन से डोल तक)
- प्रातः काल:
- मंगला आरती: 8:00 - 8:30 बजे
- श्रृंगार: 8:30 - 8:40 बजे
- ग्वाल: 8:55 - 9:00 बजे
- राजभोग: 11:00 - 11:30 बजे
- संध्या काल:
- उद्धापन: 4:00 - 4:04 बजे
- भोग: 4:30 - 4:35 बजे
- संध्या आरती: 5:00 - 5:00 बजे
- शयन: 6:00 - 6:30 बजे
ग्रीष्म ऋतु (डोल के दूसरे दिन से अन्नकूट तक)
- प्रातः काल:
- मंगला आरती: 6:30 - 7:00 बजे
- श्रृंगार: 8:00 - 8:10 बजे
- ग्वाल: 8:25 - 8:30 बजे
- राजभोग: 10:30 - 10:40 बजे
- संध्या काल:
- उद्धापन: 4:30 - 4:35 बजे
- भोग: 4:50 - 5:00 बजे
- संध्या आरती: 5:25 - 5:25 बजे
- शयन: 6:00 - 6:40 बजे
यह समय-सारणी भक्तों को मंदिर के दर्शन और पूजा में शामिल होने के लिए सुविधाजनक बनाती है।
अन्नकूट महोत्सव: मंदिर का प्रमुख उत्सव
मंदिर में प्रत्येक वर्ष अन्नकूट महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव बेटी जी का मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित होता है, जिसमें भगवान श्री गोवर्धन नाथ जी को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है।
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इस अवसर पर मंदिर को फूलों और रंग-बिरंगी सजावट से सजाया जाता है, और भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। अन्नकूट का यह उत्सव भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा से जुड़ा है, जो भक्तों में भक्ति और श्रद्धा का संचार करता है।
मंदिर का जीर्णोद्धार और दानदाताओं का योगदान
मंदिर के जीर्णोद्धार में कई दानदाताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गोलोकवासी श्री गोविंद नारायण अग्रवाल की पुण्य स्मृति में उनके ज्येष्ठ पुत्र राम नारायण (लाल मकान, बूढ़ेनाथ) द्वारा मंदिर के अंशखंड पर मार्बल का कार्य करवाया गया। यह निर्माण कार्य संवत् 2060 में डाला छठ के अवसर पर पूरा हुआ था।
इसके अलावा, स्वर्गीय रामगोपाल जी उर्फ बब्लू जी लोहिया की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा देवी की स्मृति में होम्योपैथिक औषधालय भवन का निर्माण करवाया गया, जो संवत् 2084 में पूरा हुआ।
मिर्ज़ापुर यात्रा में बेटी जी का मंदिर क्यों है खास?
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर, यानी बेटी जी का मंदिर, मिर्ज़ापुर की यात्रा का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी इसे विशेष बनाती है।
मंदिर की भव्य वास्तुकला, श्री कृष्ण की लीलाओं से सजी पेंटिंग्स, और यहाँ की चमत्कारी कथाएँ भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इसके अलावा, मंदिर द्वारा संचालित होम्योपैथिक औषधालय सामाजिक सेवा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
यदि आप मिर्ज़ापुर की यात्रा पर हैं, तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें। यहाँ की शांति और भक्ति भावना आपके मन को सुकून देगी, और आप भगवान श्री कृष्ण की कृपा का अनुभव करेंगे।
मंदिर के दर्शन समय और उत्सवों की जानकारी पहले से प्राप्त कर लें, ताकि आप अपनी यात्रा को और भी स्मरणीय बना सकें।
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर (बेटी जी का मंदिर) - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
निष्कर्ष
श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर, जिसे बेटी जी का मंदिर के नाम से जाना जाता है, मिर्ज़ापुर का एक आध्यात्मिक रत्न है। इसकी ऐतिहासिक कथाएँ, भव्य वास्तुकला, और भक्ति परंपरा इसे एक अनूठा तीर्थ स्थल बनाती हैं।
यह मंदिर न केवल भक्तों के लिए, बल्कि इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है। मिर्ज़ापुर की यात्रा में इस मंदिर को शामिल करें और भगवान श्री कृष्ण की कृपा और बेटी जी की भक्ति की अनुभूति करें।
अस्वीकरण (Disclaimer)
यह जानकारी सामान्य ज्ञान और पर्यटन उद्देश्यों के लिए प्रदान की गई है। मंदिर के दर्शन समय और आयोजनों की पुष्टि के लिए कृपया बेटी जी का मंदिर ट्रस्ट से संपर्क करें।